P E ratio, price to earnings ratio formula, meaning and examples hindi

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P/E ratio, price to earnings ratio, p/e ratio formula, pe ratio meaning and examples hindi


By Javed / May'08, 2023:


Price earnings ratio, P/E ratio एक फाइनेंशियल मैट्रिक है, यह मैट्रिक एक स्टॉक को एनालाइज करने के लिए बहुत उपयोगी होता है।


PE Ratio से किसी भी स्टॉक की सही वैल्यू को पता करना होता है, जिस के लिए निवेशक p/e रेश्यो फॉर्मूला का उपयोग करता है। इस फार्मूले में कंपनी के मार्केट प्राइस को उसके अर्निंग पर शेयर से भाग करके p/e रेश्यो निकाला जाता है।


निवेशक को pe ratio के माध्यम से क्या जानकारी प्राप्त होती है, निवेशक pe ratio के माध्यम से स्टॉक की सही वैल्यू का पता लगाने की कोशिश करता है।


किसी स्टॉक का pe ratio जितना कम हो, वह बाजार में उतना सस्ता होता है। अगर कम pe ratio वाली कंपनी के स्टॉक और ज्यादा pe ratio वाले की तुलना की जाए तो कम pe ratio वाले स्टॉक सस्ते होंगे, ज्यादा pe ratio वाले की तुलना में।


हम लेख में pe ratio से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल जो आपके हो सकते हैं, उनके जवाब इस आर्टिकल में देने की कोशिश करेंगे। लेख में प्राइस अर्निंग्स रेश्यो से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध है, जो आपकी सहायता करेगी।



price to earnings ratio hindi




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| शीर्षक | P E ratio, price to earnings ratio formula, meaning and examples hindi  |


| श्रेणी | स्टॉक मार्केट |


| विवरण | P E ratio, price to earnings ratio formula, meaning and examples hindi  |


| वर्ष | 2023 |


| देश | भारत |


Price to earnings ratio के बारे में जानकारी:

PE Ratio, प्राइस अर्निंग्स रेश्यो, एक स्टॉक के फंडामेंटल को एनालाइज करते वक्त बहुत जरूरी होता है, एक वैल्यू इन्वेस्टर के लिए pe ratio को समझना बहुत जरुरी है।


इंटेलिजेंट इन्वेस्टर बुक में लेखक ने समझाया है की वैल्यू इन्वेस्टिंग क्या होती है और इंटेलिजेंट इन्वेस्टर क्या करता है अपने निवेश में प्रॉफिट बनाने के लिए।


आसान भाषा में समझें तो निवेश करने का उद्देश्य प्रॉफिट बनाना होता है, लेकिन निवेश करने से प्रॉफिट नही होता है, सही निवेश करने से और अपने जोखिम को कम करने से होता है।


कैसे एक सफल निवेशक अपने लिए प्रॉफिट बनाता है, कैसे रिस्क को मैनेज करता है, कैसे मार्जिन सेफ्टी करता है और बाजार में अपने लिए सस्ता सौदा ढूंढकर उसे ऊंचे दाम पर बेच कर मुनाफा कमाता है, किताब में बहुत अच्छे से समझाया गया है।


लेखक अच्छे स्टॉक को ढूंढने की प्रक्रिया को समझाते हैं की कैसे अच्छी कंपनी के स्टॉक को इंट्रिंसिक सही वैल्यू पर खरीद कर, उसे कुछ समय होल्ड कर, मुनाफा कमाना है।

किताब के माध्यम से लेखक ने pe ratio, pb ratio, बुक वैल्यू, ROE जैसे मैट्रिक कितने महत्वपूर्ण होते हैं, स्टॉक के बारे रिसर्च करने के लिए, यह बताया है।


पी ई रेश्यो क्या होता है | what is PE in share market:


P/E Ratio एक ऐसा फार्मूला है जिसे इन्वेस्टर्स यूज़ करते हैं किसी भी कम्पनी के शेयर का P/E Ratio क्या है यह जानने के लिए इससे पता चलता है कि वह कंपनी अर्निंग्स में कितना पे कर रहे हैं।


एक ज्यादा पी ई रेश्यो यह बताता है कि मार्केट को कंपनी से भविष्य में ग्रोथ की उम्मीद है और कम P/E Ratio होने पर यह बताता है कि मार्केट को कंपनी से ज्यादा ग्रोथ की उम्मीद नहीं  है।


ध्यान देने वाली बात यह फाइनेंशियल मैट्रिक्स में से एक है जो कि कंपनी स्टॉक की वैल्यू निकलने के लिए इस्तेमाल होता है, जरूरी बात यह है कि इन्वेस्टमेंट डिसीजन लेने के लिए सिर्फ इस पर डिपेंड नहीं हुआ जा सकता है ।


P/E Ratio का फॉर्मूला / P/E Ratio formula:


Formula and calculation of PE Ratio


P/E Ratio फाइनेंशियल मेट्रिक है जिसे कंपनी के स्टॉक के रिलेटिव वैल्यूएशन करने के लिए यूज किया जाता है।

P/E Ratio कैलकुलेट करने के  लिए किसी भी कंपनी के स्टॉक की करंट मार्केट प्राइस को अर्निंग पर शेयर से डिवाइड किया जाता है।


pe ratio formula


P/E Ratio = Market Price per Share / Earnings per Share (EPS)


जिसमें,

जिसमें मार्केट प्राइस पर शेयर किसी भी कंपनी के स्टॉक के एक सिंगल शेयर की मार्केट प्राइस है,

और 

अर्निंग पर शेयर आखरी बार 8 महीनों में उसी शेयर की अर्निंग से इसे कैलकुलेट करने के लिए कंपनी के टोटल अर्निंग्स को कंपनी के टोटल नंबर ऑफ आउटस्टैंडिंग शेयर्स से डिवाइड किया जाता है।


PE Ratio कैसे निकाले / PE Ratio calculation:


इसे उदाहरण से समझते हैं रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड जो इंडियन स्टॉक मार्केट में लिस्टेड बहुत ही प्रचलित कंपनी है,

P/E Ratio का उदाहरण/ P/E Ratio Example:


5 मई 2023 को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के स्टॉक की कीमत ₹2580 थी और इसका EPS पिछले 12 महीने से ₹115 है अब इसका P/E Ratio कैलकुलेट करने के लिए:


P/E Ratio का फार्मूला 

P/E Ratio = मार्केट प्राइस पर शेयर /  अर्निंग पर शेयर


P/E Ratio = 2,580 / 115 = 22.43


इसका मतलब है निवेशक हर एक रुपए की अर्निंग जो कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड से निकल रही है उसके लिए ₹22.43  देने के लिए तैयार हैं।


यहां यह नोट करना जरूरी है कि P/E Ratio फाइनेंशियल रेश्योस में से एक है जो कि कंपनी के स्टॉक के वैल्यूएशन में इस्तेमाल किया जाता है। निवेशकों को किसी भी निवेश को करने से पहले दूसरे फैक्टर्स को भी कंसीडर करना चाहिए जैसे कि कंपनी के ग्रोथ प्रोस्पेक्ट्स क्या है, फाइनेंशियल हेल्प क्या है इंडस्ट्री के ट्रेंड्स क्या है और मैनेजमेंट क्वालिटी।



forward price-to-earnings (P/E) ratio


फॉरवर्ड price-to-earnings ratio एक वैल्यूएशन मेट्रिक है जो किसी कंपनी के स्टॉक की रिलेटिव वैल्यू को तय करने के लिए इस्तेमाल की जाती है जिसमें उसके स्टॉक की करंट प्राइस को उसकी अनुमानित अर्निंग पर शेयर से कंपेयर किया जाता है।


फॉरवर्ड P/E Ratio को कैलकुलेट करने के लिए आपको करंट मार्केट प्राइस पर शेयर को आने वाले साल की ऐस्टीमेटेड अर्निंग पर शेयर से डिवाइड करना होता है।


फॉरवर्ड P/E Ratio ज्यादा होने पर यह दिखाता है कि मार्केट को कंपनी के भविष्य में जल्दी ग्रो होने की उम्मीद है।


इसे इंडियन रिलायंस इंडस्ट्रीज के उदाहरण से समझते हैं जो भारत की श्रेष्ठ कंपनियों में से एक है :


5 मई 2023 को रिलायंस इंडस्ट्रीज का स्टॉक प्राइस की कीमत ₹2350 थी एनालिस्ट एस्टिमेट्स के हिसाब से कंपनी को आने वाले साल में ₹125 पर शेयर के हिसाब से इनकम होगी। इसलिए रिलायंस इंडस्ट्रीज का फॉरवर्ड पी रेश्यो कैलकुलेट करने के लिए:


Forward P/E ratio = Current market price per share / Estimated earnings per share for the upcoming fiscal year

Forward P/E ratio = Rs. 2,350 / Rs. 125

Forward P/E ratio = 18.8


जिसका मतलब है की निवेशक रिलायंस इंडस्ट्री के आने वाले साल में ₹1 के बदले ₹18.8 देने के लिए तैयार है ।

रिलायंस इंडस्ट्रीज का एवरेज फॉरवर्ड पी ई रेश्यो दूसरी कंपनी जो इसी क्षेत्र में है, उन कंपनीज़ से कंपेयर करने पर यह पता किया जा सकता है कि यह स्टॉक ओवरवैल्यूड है या अंडरवैल्यूड।


Trailing price-to-earnings (P/E) ratio


ट्रेलिंग प्राइस अर्निंग रेशों एक फाइनैंशल मेट्रिक है जिसका इस्तेमाल कंपनी के स्टॉक प्राइस की आकर्षण को इवेलुएट करने के लिए होता है।


ट्रेलिंग पी रेश्यो को कैलकुलेट करने के लिए कंपनी के स्टॉक की करंट मार्केट प्राइस पर शेयर को उसके EPS से डिवाइड करना होता है।


उदाहरण के लिए अगर एक कंपनी का स्टॉक ₹1000 पर शेयर पर ट्रेड हो रहा है और उसका EPS पिछले 12 महीने से ₹50 पर शेयर है तो ट्रेलिंग पी ई रेश्यो 20 होगा।


इसे इंडियन रिलायंस इंडस्ट्रीज के उदाहरण से समझते हैं 

जैसे कि 5 मई 2023 को रिलायंस इंडस्ट्रीज का स्टॉक ₹2500 per share  पर ट्रेड हो रहा था और उसका पिछले 12 महीने से ई पी एस ₹81 है इसलिए इसका ट्रेलिंग पी ई रेशियो एप्रोक्सीमेटली 30.55 होगा।


जो यह बताता है कि निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्टॉक का 1 शेयर लेने के लिए 30.55 गुना ज्यादा देने के लिए तैयार हैं।


ज्यादा बढ़ा हुआ P/E ratio  निवेशक को कंपनी के भविष्य में अच्छी अर्निंग्स ग्रोथ की उम्मीद दिखाता है।

हालांकि यह जरूरी नहीं है कि ज्यादा बढ़ा हुआ P/E ratio दिखाएं कि स्टॉक ओवरवैल्यूड है और कम भी रेश्यो जरूरी नहीं है कि यही उसका मतलब हो कि स्टॉक अंडरवैल्यूड है कंपनी के दूसरे फैक्टर्स भी निवेशक को निवेश करने से पहले ध्यान में रखना चाहिए दूसरे फैक्टर जैसे कि इंडस्ट्री ट्रेंड्स या कॉन्पिटिटिव लैंडस्केप और मैक्रोइकोनॉमिक कंडीशन किसी भी कंपनी स्टॉक की कैलकुलेशन के लिए देखना जरुरी है।


PE Ratio कितना होना चाहिए? | PE Ratio kitna hona chahiye?


किसी भी कंपनी के स्टॉक का PE Ratio वैल्यू इन्वेस्टर के हिसाब से 15 से 20 के बीच है तो यह निवेशकों के लिए निवेश करने का एक अच्छा संकेत माना जाता है।


Valuation of PE Ratio


PE Ratio निवेशकों को इस बात का अंदाजा दे सकता है कि वह एक यूनिट रनिंग के लिए कितना पैसा पे कर रहे हैं जहां हाई P/E ratio निवेशकों को हाई एक्सपेक्टशंस दिखाता है वही एक कम P/E ratio किसी कंपनी के अंडरवैल्यूड या लिमिटेड ग्रोथ को दिखाता है ।


हालांकि यहां यह बात ध्यान में रखना जरूरी है कि  अकेला P/E ratio मेट्रिक किसी भी कंपनी की वैल्यू को मापने के लिए सही नहीं है , इसके लिए दूसरे फैक्टर भी ध्यान में रखना चाहिए जैसे कि कंपनी के फाइनेंशियल हेल्थ, कॉम्पिटेटिव पोजिशन और ग्रोथ पोटेंशियल।

 

निवेशकों के लिए यह जरूरी है कि वह अपने रिसर्च और एनालिसिस करें कि कंपनी का स्टॉक निवेश की एक अच्छी अपॉर्चुनिटी है या नहीं। 


P/E ratio के उदाहरण / P/E ratio example:


P/E ratio को कैलकुलेट करने के कुछ उदाहरण:


नंबर 1 : रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड

मान लें रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड का करंट मार्केट प्राइस ₹2000 पर शेयर है और इसकी अर्निंग पर शेयर पिछले 12 महीनों की ₹80 है तो पी रेश्यो कैलकुलेट करने के लिए


PE Ratio = Market Price per Share / Earnings per Share

= 2,000 / 80

= 25


इसलिए आरआईएल का पी रेश्यो  25 रहा होगा।


नंबर 2 : एचडीएफसी बैंक लिमिटेड


मान लें की एचडीएफसी बैंक का करंट मार्केट प्राइस 1500 रुपए पर शेयर है और इसका अर्निंग पर शेयर पिछले 12 महीने से ₹50 है तो इसका पी रेशियो 


PE Ratio = Market Price per Share / Earnings per Share

= 1,500 / 50

= 30


इसलिए एचडीएफसी बैंक का पी ई रेश्यो 30 होगा।


नंबर 3 : टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज टीसीएस 


मान लें की टी सी एस का करंट मार्केट प्राइस ₹3000 पर शेयर है और इसका पिछले 12 महीनों से अर्निंग पर शेयर ₹100 है

तो इसके पीई रेश्यो की गणना करें :


PE Ratio = Market Price per Share / Earnings per Share

= 3,000 / 100

= 30


इसलिए टीसीएस पी ई रेश्यो 30 होगा।


यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि P/E ratio दूसरे अन्य फाइनेंशियल रेश्योस की तरह ही एक है, जिसे कंपनी में निवेश के लिए एनालाइज किया जाता है। कंपनी की फाइनेंशियल हेल्प और पोटेंशियल को जानने के लिए इसके साथ दूसरे रेश्योस और फैक्टर्स को देखना भी बहुत जरूरी है।


PE Ratio कितने प्रकार के हैं/ PE Ratio types:


Absolute P E Ratio vs Relative PE Ratio


पी ई रेश्यो दो प्रकार के होते हैं ऐप्सोल्युट रेश्यो और रिलेटिव रेश्यो


ऐप्सोल्युट रेश्यो किसी स्टॉक की करंट मार्केट प्राइस को उसके हिस्टोरिकल अर्निंग पर शेयर से कंपेयर करता है। इसे कैलकुलेट करने के लिए किसी स्टॉक की करंट प्राइस को पिछले 12 महीने की अर्निंग पर शेयर से डिवाइड करना होता है।

ज्यादा बढ़ा हुआ पीई रेश्यो निवेशकों को कंपनी की अर्निंग्स के बढ़ने की सलाह देता है।


जबकि रिलेटिव पी ई रेशों कंपेयर करता है एक कंपनी के पी रेशियो को उससे जुड़ी इंडस्ट्री या ब्रोडर मार्केट से।

इसे कैलकुलेट करने के लिए कंपनी के पी ई रेश्यो को उसी इंडस्ट्री के एवरेज पी रेश्यो से डिवाइड किया जाता है।

हायर रिलेटिव पी ई रेश्यो यह बताता है कि कंपनी का स्टॉक अपने मार्केट और अपने साथी कंपनी से महंगा है।


एप सॉल्यूट रेश्यो और रिलेटिव पी ई रेश्यो डिफरेंट समझने के लिए दो कंपनीस का उदाहरण लेते हैं इंफोसिस लिमिटेड और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस लिमिटेड।


5 मई 2023 को इंफोसिस का मार्केट प्राइस 1670 रुपए पर शेयर रहा और पिछले 12 महीने के अर्निंग पर शेयर ₹58 रहा इसलिए इसका एप सॉल्यूट पी ई रेश्यो 28.36 है जबकि टीसीएस का मार्केट प्राइस ₹4000 प्रतिशत प्रति शेयर रहा और इसका अर्निंग पर शेयर ₹153 रहा इसलिए इसका ऐप सैल्यूट पी ई रेश्यो 26.11 होगा।


अब इन दोनों कंपनीस का निफ़्टी फिफ्टी इंडेक्स के आधार पर रिलेटिव पी ई रेश्यो निकालते हैं ।


5 मई 2023 को निफ़्टी फिफ्टी इंडेक्स का एवरेज पी ई रेश्यो 29.16 रहा और इंफोसिस का रिलेटिव पी ई रेश्यो 0.97 रहा जो यह बताता है कि निफ्टी 50 इंडेक्स से यह सस्ता है, जबकि टी सी एस का रेश्यो 0.89 रहा जो इसे निफ़्टी फिफ्टी इंडेक्स के कंपैरिजन में महंगा बताता है।


यह बताता है की ऐपसैल्यूट पी ई रेश्यो किसी स्टॉक की उसके अपने हिस्टोरिकल अर्निंग से मेजर होती है, जबकि रिलेटिव पी ई रेश्यो को बेंचमार्क इंडेक्स से मापा जाता है। किसी कंपनी का वैल्यूएशन करने के लिए निवेशक को यह दोनों रेश्योस का पता होना चाहिए।


P E Ratio Limitations


स्टॉक मार्केट में किसी कंपनी का वैल्यूएशन करने के लिए पी ई रेश्यो का इस्तेमाल होता है हालांकि इसके साथ निवेशकों को कुछ लिमिटेशंस का ध्यान रखना चाहिए :


1.पी ई रेश्यो की पहले लिमिटेशंस यह है कि यह कंपनी की ग्रोथ प्रोस्पेक्ट्स को कंसीडर नहीं करता :


बढ़ा हुआ पी ई रेश्यो यह दिखाता है कि भविष्य में मार्केट कंपनी की स्ट्रांग ग्रोथ को एक्सपेक्ट करती है लेकिन इसका मतलब यह भी हो सकता है कि स्टॉक अपने आमदनी से ओवरवैल्यूड है।


उदाहरण के लिए,

इंडियन आईटी कंपनी टीसीएस जिसका पी ई रेश्यो पूरे इंडियन मार्केट से कंपेयर करने पर बहुत बढ़ा हुआ है हालांकि टीसीएस का एक स्ट्रांग ग्रोथ रिकॉर्ड है और भविष्य में उसकी और ग्रोथ की उम्मीद है।


2.पी ई रेश्यो का दूसरा लिमिटेशन


यह एक टाइम के इवेंट्स को या अकाउंटिंग पॉलिसीज में चेंज की वजह से गलत परिणाम बताता है।


उदाहरण के लिए 2020 में इंडियन एयरलाइन कंपनी इंडिगो जिसने नेगेटिव पी ई रेश्यो दिखाया था ,covid-19 पांडेमिक की वजह से अर्निंग्स ना होने पर इसे लॉस हुआ था।

हालांकि, कंपनी के लॉन्ग टर्म अर्निंग पोटेंशियल पर एक समय के इवेंट से इतना फर्क नहीं पड़ता। 


3.इसके साथ ही पी ई रेश्यो अलग इंडस्ट्रीज और अलग-अलग सेक्टर्स को कंपेयर करने के लिए एक रिलाएबल मेट्रिक नहीं है।


उदाहरण के तौर पर टेक्नोलॉजी कंपनी में बढ़ा हुआ पी रेश्यो स्ट्रांग ग्रोथ बता सकता है लेकिन यूटिलिटी कंपनी में टिपिकल होना ज्यादा स्टेबल अर्निंग प्रोफाइल है।


इसलिए पी ई रेश्यो कंपनी के वैल्यूएशन के लिए एक महत्वपूर्ण दूर हो सकता है लेकिन निवेशकों को इसके लिमिटेशंस का पता होना चाहिए।


P E Ratio का महत्त्व / P/E ratio importance:


किसी भी कंपनी का रेशियो कैलकुलेट करने के लिए कुछ फैक्टर्स का ध्यान में रखना जरूरी है जो यहां बताए गए हैं:


ग्रोथ प्रोस्पेक्ट्स:


बढ़े हुए पी ई रेश्यो वाली कंपनी, कम पी ई रेश्यो वाले कंपनी से ज्यादा ग्रोथ दिखा सकती है उदाहरण के लिए एक टेक्नोलॉजी कंपनी समय के साथ ज्यादा विरोध करती है जिसका हायर पी ई रेश्यो हो वहीं एक यूटिलिटी कंपनी जो धीरे-धीरे ग्रोथ करती है उससे वैसे ही उम्मीद की जाती है।


पी ई रेश्यो एक इंडस्ट्री टाइप से दूसरी इंडस्ट्री टाइप की कंपनीज का पी ई रेश्यो एक समान नहीं हो सकता है। यह जरूरी है कि किसी भी कंपनी के पी ई रेश्यो को बेहतर तरीके से समझने के लिए, सेम सेक्टर की कंपनी के पी ई रेश्यो से कंपेयर किया जाए। 

उदाहरण के लिए,

दवा की कंपनी की अच्छे प्रॉफिट मार्जिन और स्ट्रांग ग्रोथ की वजह से पी ई रेश्यो, मैन्युफैक्चरिंग कंपनी से ज्यादा हो सकता है।


जो कंपनीज हाय डिविडेंड्स देती हैं उनका पी ई रेश्यो कम होता है उन कंपनीज़ के मुकाबले में जो डिविडेंड नहीं देती हैं। ऐसा इसलिए निवेशक ज्यादा ग्रोथ वाली कंपनी में निवेश करना पसंद करते हैं,जबकि डिविडेंड देने वाली कंपनी की ग्रोथ बहुत धीमी होती है।


किसी भी कंपनी का पी ई रेश्यो उसके इकनोमिक और पॉलीटिकल फैक्टर्स की वजह से भी कम या ज्यादा हो सकता है। 

उदाहरण के लिए पॉलीटिकल इश्यूज की वजह से निवेशक ज्यादा रिस्क लेने से बचते हैं जिसकी वजह से पी ई रेश्यो कम होता है, ऐसे ही रिसैशन के दौर में निवेशक सतर्क होते हैं इसकी वजह से पी ई रेश्यो कम होता है।



शेयर की सही कीमत कैसे पता करें?


इन्हें उदाहरण से समझते हैं:


इंफोसिस कंपनी (INFY):P/E ratio of 29.25


इंफोसिस एक टेक्नोलॉजी कंपनी है जो कंसलटिंग करती है और अपनी सर्वश्रेष्ठ दूसरे देशों में प्रोवाइड करती है स्काहाई रेश्यो इसकी अच्छी ग्रोथ प्रोस्पेक्ट्स को दिखाता है और ज्यादा प्रॉफिट मार्जिंस को दर्शाता है


टाटा मोटर्स लिमिटेड (TATAMOTORS): P/E ratio of 15.54


टाटा मोटर्स गाड़ी व्हीकल कार्स बनाने वाली ऑटोमोटिव कंपनी है इसलिए इसका लो और पीवी रेशों इसके साइक्लिक नेचर को दर्शाता है और कंपनी के धीरे-धीरे ग्रोथ होने को दर्शाता है।


आईटीसी लिमिटेड (ITC): P/E ratio of 15.13


आईटीसी इंडस्ट्री जो अलग अलग  सेक्टर में काम करती है , जैसे कि, टोबैको, हॉस्पिटैलिटी और एफएमसीजी। इसका कम रेशियो इसकी डिविडेंड देने की पॉलिसी को दर्शाता है और कुछ सेगमेंट्स में धीरे धीरे ग्रोथ होना दिखाता है।


PE Ratio FAQs


पी ई रेश्यो का क्या मतलब होता है / p/e ratio meaning

पी ई रेश्यो जिसे प्राइस टू रनिंग प्राइस टू अर्निंग्स रेशियो भी कहा जाता है एक फाइनेंशियल मैट्रिक है जिसका इस्तेमाल कंपनी के वैल्यूएशन के लिए होता है इसे कैलकुलेट करने के लिए एक कंपनी के स्टॉक का मार्केट प्राइस पर शेयर उसके रनिंग पर शेयर से डिवाइड किया जाता है।


अच्छा पीई अनुपात क्या है? | What is good PE ratio?


एक अच्छा P/E Ratio वैसे तो 20 के आसपास माना जा सकता है क्योंकि यह शेयर को ना ही सस्ता दिखाता है और ना ही महंगा बताता है।

ध्यान रखने वाली बात यह है कि जिन कंपनियों में हाई ग्रोथ है वे लगभग हमेशा ही हाई pe पर ट्रेड करते हैं इसलिए निवेश से पहले आपको कंपनी के दूसरे फंडामेंटल्स की भी अच्छे से जांच कर लेनी चाहिए।



हाई PE रेश्यो अच्छा है या बुरा है? | Is high PE ratio good or bad?


हाई pe ratio निवेशक को यह बताता है कि स्टॉक अपनी असल कीमत से ज्यादा पर मिल रहा है यानी यह ओवरवैल्यूड है। हालांकि, इससे यह भी पता चलता है कि इस स्टॉक या कंपनी में भविष्य में अच्छी ग्रोथ देखने को मिल सकती है, भले ही यह अभी अपनी कीमत से अधिक पर ट्रेड हो रहा हो। आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की ग्रोथ स्टॉक्स अक्सर बहुत ही वोलेटाइल होते हैं और इसलिए एक जोखिमभरा निवेश इंस्ट्रूमेंट समझे जाते हैं।



क्या PE Ratio 30 अच्छा है? | Is 30 a good PE ratio?


वैसे तो 30 pe ratio को बाज़ार के मूल्यांकन के अनुसार बहुत हाई pe ratio माना जाता है, हालांकि, निवेशकों द्वारा ऐसी कंपनी के स्टॉक्स के चुनाव के लिए यह रेश्यो चुना जाता है, जिनके शुरुआती दौर में बहुत तेज़ गति से ग्रोथ की संभावनाएं बनती हैं। एक बार जब कंपनी अच्छी तरह से अपनी जगह बना लेती है और इसमें स्थिरता आ जाती है, तो यह इसके बाद समय के साथ धीरे धीरे ग्रो होती है और इस वजह से इसका pe ratio भी नीचे आने लगता है, हालांकि, कंपनी के प्रदर्शन और फाइनेंशियल अच्छे होते हैं।




PE Ratio कैसे निकाले?


P/E Ratio को निकालने के लिए कंपनी के मार्केट प्राइस पर शेयर को अर्निंग्स पर शेयर से डिवाइड करें।

जिसमें, EPS जानने के लिए आप कंपनी के सारे टैक्स चुका देने के बाद बचे लाभ को उसके कुल शेयर्स से डिवाइड करके निकाल सकते हैं।



भारत में पी ई रेश्यो का इस्तेमाल कैसे किया जाता है?

पी ई रेश्यो भारत में इंडियन स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड विभिन्न कंपनी के वैल्यूएशन और उनके परफॉर्मेंस को एनालाइज करने के लिए दूसरे फाइनेंशियल मैट्रिक्स के साथ इस्तेमाल किया जाता है। 

इसे एक ही सेक्टर में अलग-अलग कंपनी को कंपेयर करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर एक कंपनी के हाल के वैल्यूएशन को उसके पिछले परफॉर्मेंस से कंपेयर करने के लिए भी किया जा सकता है।


भारतीय स्टॉक्स में एक अच्छा

पी ई रेश्यो कौन सा माना जाता है? 

किसी भी पी ई रेश्यो को वैसे तो यूनिवर्सल ये अच्छा नहीं कहा गया है, लेकिन एक आदर्श पी ई रेश्यो कुछ फैक्टर्स पर निर्धारित किया जा सकता है जैसे कि कंपनी की ग्रोथ उसके इंडस्ट्री और वर्तमान मार्केट की कंडीशन। अधिकतर एक कम पी ई रेश्यो किसी भी कंपनी के स्टॉक को अंडरवैल्यूड दिखाता है और एक ज्यादा पी ई रेश्यो कंपनी के स्टॉक का ओवर वैल्यू होना बताता है।


इंडियन स्टॉक के लिए पी ई रेश्यो को कैसे कैलकुलेट किया जाए? 

पी ई रेश्यो को कैलकुलेट करने के लिए किसी भी स्टॉक के करंट मार्केट प्राइस को उसी की अर्निंग पर शेयर से डिवाइड करना होता है। 

अर्निंग पर शेयर कंपनी के फाइनेंशियल स्टेटमेंट से प्राप्त हो सकती है।


भारत में निवेश करने के लिए पी ई रेश्यो का दूसरे फैक्टर्स के साथ कैसे इस्तेमाल किया जाए?

निवेश करने के लिए पी ई रेश्यो अन्य फैक्टर्स के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है हालांकि यह जरूरी है की सबसे पहले कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ और उसका ग्रोथ पोटेंशियल उसकी सारी इकोनामिक और मार्केट कंडीशन स्कोर देख लिया जाए। 

एक कम पी ई रेश्यो कंपनी का अंडरवैल्यू होना दिखाता है और एक अच्छी निवेश करने की अपॉर्चुनिटी साबित हो सकता है जबकि एक हाई पी ई रेश्यो कंपनी का ओवरवैल्यू होना बताता है और निवेश करने के लिए अच्छी चॉइस ना होना दर्शाता है। 

हालांकि किसी भी निवेश करने से पहले यह जरूरी है एक निवेशक अपनी तरफ से रिसर्च और एनालिसिस कर ले।



पी ई रेश्यो के क्या फायदे हैं? 

पी ई रेश्यो को इस्तेमाल करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी कंपनी के वैल्यूएशन आसानी से पता किया जा सकता है,यह निवेशक की मदद करता है अलग-अलग फैक्टर्स और अलग-अलग कंपनी को कंपेयर करने में और निवेश की पोटेंशियल अपॉर्चुनिटी पहचानने में,पी ई रेश्यो यह एक सिंपलीफाइड मैट्रिक है, लेकिन इसके अलावा बाकी दूसरे फैक्टर्स को देखें और परखना भी बहुत जरूरी होता, सिर्फ इस पर नहीं निर्भर नहीं रहा जा सकता है, किसी भी निवेश को करने से पहले।


जरूरी बात:

किसी भी स्टॉक के बारे में रिसर्च में pe ratio बहुत ही महत्वपूर्ण है, उसे उसकी सही कीमत पर खरीदने के लिए।


अगर एक ही सेक्टर और इंडस्ट्री की दो कंपनियों की तुलना की जाए, तो उसमें कम pe ratio वाली कंपनी, ज्यादा pe ratio वाली कंपनी से सस्ती है।


PE Ratio वैल्यू इनवेस्टिंग में बहुत उपयोगी है, इसके माध्यम से स्टॉक अभी वर्तमान में जिस प्राइस पर बाजार में ट्रेड कर रहा है, उस कीमत पर सस्ता है, या महंगा है, एनालाइज करने के लिए उपयोग होता है।


PE Ratio के अलावा भी बहुत सी चीजें हैं जिनका इस्तेमाल फंडामेंटल एनालिसिस के लिए होता है, सिर्फ pe ratio के माध्यम से स्टॉक के बारे में अनुमान नहीं लगाया जाता, इसमें विभिन्न रेश्यो और चीजों को रिसर्च करने के बाद, स्टॉक अभी सस्ता है, सही वैल्यू पर है या नहीं इसका अनुमान लगाया जाता है।


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