ROE क्या होता है, रिटर्न ऑन इक्विटी कितना होना चाहिए।

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ROE क्या होता है, रिटर्न ऑन इक्विटी कितना होना चाहिए।


By Javed / June 05,2023:


ROE का मतलब रिटर्न ऑन इक्विटी होता है, एक इक्विटी शेयर निवेशक के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण अनुपात होता है। जिसके माध्यम से निवेशक किसी भी कंपनी की वित्तीय स्थितियों को समझता है, कंपनी कैसा प्रदर्शन कर रही है, कंपनी की स्थितियां अभी निवेश करने लायक है या नहीं।

ROE दर्शाता है कि कोई कंपनी अपनी इक्विटी पर कितना रिटर्न दे रही है। रिटर्न ऑन इक्विटी कंपनी के कुल रेवेन्यू से सारे खर्चे को घटाकर नेट प्रॉफिट के बाद निकाला जाता है।

ROE रिटर्न ऑन इक्विटी एक निवेशक के लिए बहुत जरूरी अनुपात है, जिसे निवेशक कंपनी के फंडामेंटल की जांच करते वक्त देखता है।

ROE जितना ज्यादा हो उतना अच्छा माना जाता है, लेकिन सिर्फ़ ROE अच्छा होना, इसका मतलब यह नहीं होता की कंपनी का शेयर अच्छा है, यह रिसर्च का एक अनुपात है।

ROE के साथ भी एक निवेशक फंडामेंटल एनालिसिस करते समय ROCE रेश्यो, पीबी रेश्यो, pe ratio, डेट टू इक्विटी रेश्यो जैसे अनुपातों का इस्तेमाल करता है, जो की बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। सभी के बारे में महत्वपूर्ण आर्टिकल  moneyindex.in पर उपलब्ध है, आप उन्हें भी पढ़ें।

ROE क्या होता है, रिटर्न ऑन इक्विटी कितना होना चाहिए।


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| शीर्षक | ROE क्या होता है, रिटर्न ऑन इक्विटी कितना होना चाहिए।


| श्रेणी | शेयर बाजार |


| विवरण | शेयर बाजार में Return On Equity का महत्त्व और ROE से जुड़ी जानकारी । |


| वर्ष | 2023 |


| देश | भारत |



ROE कितना होना चाहिए:

ROE, रिटर्न ऑन इक्विटी किसी भी कंपनी का जितना ज्यादा हो, उतना अच्छा है। यह दर्शाता है कंपनी अपने बिजनेस से अच्छी कमाई करने के बाद अच्छा प्रॉफिट भी कमा रही है।

रिटन ऑन इक्विटी, ROE किसी भी कंपनी का 15 से ज्यादा होना अच्छा माना जाता है। इसे कंपनी के सेक्टर के ROE और कंपनी के कंपटीशन वाली कंपनी के साथ भी कंपेयर किया जाता है।

जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं तो आप उस कंपनी के बिजनेस में निवेश कर रहे हैं, उसकी इक्विटी के मालिक बनने जा रहे हैं।

अगर कोई भी निवेशक किसी कंपनी की इक्विटी में निवेश कर रहा है या करना चाहता है तो उसके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि कंपनी पर इक्विटी शेयर पर कितना प्रॉफिट कमा रही है।

अगर किसी बिजनेस में ROE अच्छा ना हो, तो यह समझना चाहिए कि उसकी फाइनेंशियल में कुछ ठीक नहीं है, क्योंकि कम ROE यह दर्शाता है कि कंपनी अच्छी कमाई नहीं कर रही है।


ROE क्या होता है | ROE in Share Market in Hindi



ROE यानी रिटर्न ऑन इक्विटी किसी भी कंपनी या कॉरपोरेशन की प्रॉफिटेबिलिटी और कंपनी की प्रॉफिट बनाने की कैपेसिटी को नापने का एक माप होता है। किसी कंपनी का ROE ज्यादा होने पर यह दर्शाता है कि कंपनी का मैनेजमेंट अपने इक्विटी फाइनेंसिंग से  प्रॉफिट जनरेट कर रही है और कंपनी की ग्रोथ में बढ़ोतरी हो रही है।



ROE को परसेंटेज के रूप में दर्शाया जाता है और जिन कंपनियों की नेट इनकम और इक्विटी दोनों ही प्लस में हों वह सभी कंपनी के ROE को कैलकुलेट किया जा सकता है। जिसमें,



नेट इनकम को कैलकुलेट करने के लिए कॉमन शेयर होल्डर्स को डिविडेंड दिए जाने से पहले और प्रीफर्ड शेयर होल्डर्स को डिविडेंड और लेंडर्स को इंटरेस्ट दिए जाने के बाद ही नेट इनकम की गणना की जा सकती है।



रिटर्न ऑन इक्विटी = नेट इनकम / एवरेज शेयर होल्डर की इक्विटी



किसी भी कंपनी कि नेट इनकम वह आय होती है जो एक तय समय सीमा के अंदर किए गए कमाई, खर्च और टेक्स के भुगतान निकाल देने के बात कंपनी के पास बचता है। जबकि, एवरेज शेयर होल्डर इक्विटी को शुरू में तो इक्विटी को जोड़कर कैलकुलेट किया जाता है। इसे जांचने के लिए समय सीमा के शुरुआत और अंतिम तिथि में जो नेट इनकम कमाई जाती है उससे उसका मिलान होता है।



किसी भी कंपनी का नेट इनकम को जानने के लिए आप उसके इनकम स्टेटमेंट को जांच कर सकते हैं जिसमें हर फाइनेंशियल ईयर या ट्रेडिंग 12 महीना की इनकम स्टेटमेंट में नेट इनकम को दर्शाया जाता है जो उस समय अवधि के लिए उस कंपनी के फाइनेंशियल गतिविधियों का एक योग होता है।



जबकि शेयर होल्डर्स इक्विटी किसी भी कंपनी की बैलेंस शीट से आपका आसानी से मिल सकता है जिसमें कंपनी के सभी एसेट्स और लायबिलिटीज में होने वाले बदलाव का पूरा चिट्ठा लिखा जाता है या रिकॉर्ड किया जाता है।




ROE कैसे कैलकुलेट किया जाता है | ROE calculation


ROE की गणना करने के लिए आपको नेट इनकम और शेयर होल्डर की इक्विटी के प्रोपोर्शन की तुलना करनी होती है।

इसकी गणना इस प्रकार होती है :


ROE = नेट इनकम / शेयरहोल्डर्स  की इक्विटी


नेट इनकम किसी भी कंपनी के लिए सबसे ज्यादा व्यापारिक तौर पर उपयोगी होती है क्योंकि इसमें बाकी प्रॉफिटेबिलिटी मेजरमेंट्स जैसे कि ग्रॉस इनकम या ऑपरेटिंग इनकम की तुलना में सबसे ज्यादा खर्चों को घटाया जाता है जिससे यह किसी भी कंपनी के सटीक आय का विवरण देने में सक्षम होती है।


नेट इनकम की गणना करने के लिए नेट रेवेन्यू और सभी खर्च और टैक्स के घटाने के बाद निकलने वाली शुद्ध आय होती है।


क्योंकि नेट इनकम एक तय समय सीमा में कमाई जाती है और शेयर होल्डर्स के इक्विटी एक बैलेंस शीट का अकाउंट है जो अक्सर विशेष समय अवधि के बारे में रिपोर्ट करता है इसलिए एनालिस्ट को एक एवरेज इक्विटी बैलेंस लेना चाहिए। जिसका मतलब होता है  किसी भी फाइनेंशियल ईयर का शुरुआती बैलेंस और आखरी के बैलेंस का एवरेज लेना चाहिए। 



ROE के फायदे/उपयोग (Benefits of ROE)


रिटर्न ऑन इक्विटी क्या बताती है:


ROE कंपनी के शेयर होल्डर्स के लाभ प्राप्त करने की कैपेसिटी का एक अंदाजा बताती है। यह बताता है कि कंपनी के द्वारा प्राप्त किए गए प्रॉफिट, शेयरहोल्डर्स  के लगभग कितने हिस्से पर बनता है। 


ROE अच्छा है या नहीं यह उस कंपनी के जैसे दूसरी कंपनी के बीच जो नॉर्मल ROE होता है उस पर निर्भर करता है। 


जैसे कि, यूटिलिटी सेक्टर में बैलेंस शीट में एसेट्स और डेट का रिकॉर्ड ज्यादा होता है यदि उसकी नेट इनकम से कंपेयर किया जाए तो। 


यूटिलिटी सेक्टर में नॉर्मल ROE 10% या उससे कम हो सकता है, वहीं एक टेक्नोलॉजी या रिटेल फर्म में बेलेंस शीट के नेट इनकम की तुलना में कम हिस्सों की वजह से, उनका नॉर्मल ROE 18% या उससे भी ज्यादा हो सकता है।


Return On Equity (ROE) और स्टॉक परफारमेंस


ROE का इस्तेमाल किसी भी स्टॉक की उसकी दूसरी पियर्स कम्पनियों से तुलना करने पर उस कंपनी का  ग्रोथ रेट और उसका डिविडेंड ग्रोथ रेट के ऐस्टीमेशन के लिए किया जा सकता है।


यह दोनों ही कुलेशन एक दूसरे पर निर्भर करते हैं और इन्हें सिमिलर कंपनीज के बीच में एक आसान कंपैरिजन करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।


किसी भी कंपनी के फ्यूचर ग्रोथ रेट का ऐस्टीमेशन करने के लिए उस कंपनी के ROE को कंपनी के रिटेंशन रेशों से मल्टीप्लाई करना होता है रिटेंशन रेशियो वह परसेंटेज होती है जिसमें कंपनी की नेट इनकम को कंपनी द्वारा फ्यूचर ग्रोथ के लिए निवेश किया जाता है।


ROE और सस्टेनेबल ग्रोथ रेट (SGR)


मान लीजिए कि दो कंपनीस हैं जिनके ROE और नेट इनकम एक जैसी है लेकिन रिटेंशन रेशियो अलग हैं जिसका मतलब है कि दोनों कंपनियों का सस्टेनेबल ग्रोथ रेट एसजीआर अलग होगा SGR वह रेट है जिसमें कंपनी बगैर कर चल के लिए ग्रो कर सकती है। 


SGR फॉर्मूला = ROE * रिटेंशन रेश्यो। 


उदाहरण के लिए एक कंपनी है कंपनी A जिसका ROE 15 परसेंट है और रिटेंशन रेशों 70% जबकि दूसरी कंपनी B का ROE भी 15% है लेकिन रिटेंशन रेश्यो 90% है तो कंपनी के लिए सस्टेनेबल ग्रोथ रेट 10.5% होगा जबकि कंपनी के लिए एसजीआर 13.5% है।


यदि एक स्टॉक अपने सस्टेनेबल रेट से कम ग्रोथ कर रहा है तो इसका कारण या उसकी वैल्यू का कम होना हो सकता है या मार्केट कंपनी के भीतर के महत्त्वपूर्ण जोखिमों को कंसीडर कर रही होगी। दोनों ही केस में सस्टेनेबल रेट से बहुत ज्यादा या कम ग्रोथ रेट पर निवेशक को कंपनी की और जांच करने की सलाह दी जाती है।



प्रॉब्लम्स को ढूंढने के लिए ROE का उपयोग


ROE का इस्तेमाल करके समस्याओं को पहचानने के लिए समझना संभव है। लेकिन क्या स्टॉक जिनके ROE बहुत ज्यादा है वह एवरेज स्टाइल वाले स्टॉक्स की तुलना में एवरेज ROE से बेहतर नहीं होते? क्या बहुत ज्यादा ROE वाले स्टॉक्स अच्छी वैल्यू नहीं है? 


कभी-कभी बहुत ज्यादा ROE अच्छी बात हो सकती है यदि नेट इनकम इक्विटी के कंपैरिजन में बहुत बड़ा है क्योंकि वह कंपनी की परफॉर्मेंस बहुत मजबूत होती है लेकिन अक्सर बहुत ज्यादा ROE कम इक्विटी अकाउंट की वजह से होता है जो कि रिस्क का संकेत है। 


अस्थाई लाभ / Profit और ROE


ROE के बढ़ा हुआ दिखाने का एक कारण है - 


अस्थाई लाभ


बहुत ज्यादा ROE के साथ एक समस्या हो सकती है जैसे कि अस्थाई लाभ सोचिए की एक कंपनी xyz कई साल से लाभदायक नहीं रही है हर साल के नुकसान शेयरहोल्डर्स  इक्विटी में रीड एंड लॉस के रुप में बैलेंस शीट पर दर्ज किए जाते हैं यह नुकसान नेगेटिव वैल्यू है और शेयर होल्डर्स इक्विटी को कम कर देता है


अब यह देखें की कंपनी xyz को अगर हाल ही में लाभ होता है और वह फिर से प्रॉफिटेबल कंपनी बन गई है। इस कारण ROE की गणना में डिनॉमिनेटर बहुत छोटा हो जायेगा क्योंकि कंपनी बीते कई वर्षों से नुकसान उठा रही थी, इसलिए उसका ROE बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ दिखेगा, जो महज एक छलावा है।


अत्यधिक कर्ज़ / Debt और ROE 


दूसरा मुख्य कारण जिसकी वजह से ROE ज्यादा दिखाता है, वह है कंपनी द्वारा लिया गया कर्ज। 

अगर एक कंपनी जल्दी जल्दी कर्ज ले रही है, तो इसका असर उसकी ROE पर होता है क्योंकि ROE इक्विटी एसेट्स में से डेट को घटाने पर निकलता है तो जितना अधिक कंपनी कर्ज लेती है, उतना उसका इक्विटी कम होने लगती है। 

आप देखते ही होंगे जब एक कंपनी अपने ही शेयर्स को खरीदने के लिए बड़ी मात्रा में कर्ज लेती है, जैसा अभी हाल ही में वेदांता ग्रुप द्वारा कर्ज चुकाया गया था।

इससे कंपनी का EPS बढ़ सकता है, लेकिन यह कंपनी की ग्रोथ या विकास को नही दिखा रहा है।


नेगेटिव नेट इनकम / Negative Net Income और ROE



आखरी कारण जिसकी वजह से ROE ज्यादा दिखाता है वह है नेट इनकम और शेयरहोल्डर्स की इक्विटी का नेगेटिव होना, जिसकी वजह से कंपनी का ROE बढ़ जाता है। लेकिन अगर एक कंपनी की इनकम स्टेटमेंट में नेट लॉस है या सिर्फ शेयरहोल्डर्स इक्विटी नेगेटिव है, ROE की गणना नहीं की जा सकेगी।


यदि शेयरहोल्डर्स की इक्विटी नेगेटिव दिखती है, तो सबसे साधारण समस्या अत्यधिक कर्ज़ या अस्थाई लाभदायकता हो सकती है।


लेकिन कुछ और भी कारण हो सकते हैं जैसे, प्रॉफिट और कैशफ्लो से अपने शेयर्स को खरीदने वाली कंपनियां। कुछ कंपनियां डिविडेंड देने के बजाय अपने प्रॉफिट का इस्तेमाल बायबैक शेयर्स में करती हैं, जिस कारण उसकी इक्विटी कम हो जाती है और नेगेटिव में दिखती है।


इन सभी केसेज में, नेगेटिव या अत्यधिक ROE को एक चेतावनी समझना चाहिए जिसकी जांच करना बहुत ही ज़रूरी होता है। हालांकि कुछ rare केसेस में, किसी कंपनी का नेगेटिव ROE उसके अच्छे मैनेजमेंट द्वारा लागू किए जाने वाले कैशफ्लो से शेयर बायबैक प्रोग्राम की वजह से भी हो सकता है जिसका प्रभाव बहुत ही कम दिखता है । 

किसी भी हाल में एक नेगेटिव ROE वाली कंपनी का एक पॉजिटिव ROE वाली कंपनी से तुलना नहीं की। जा सकती।


ROE की व्याख्या | ROE Meaning in Stock Market in Hindi


ROE को समझने के लिए कुछ मुद्दों पर ध्यान देना बेहद जरूरी होता है।


सबसे पहले एक अच्छा ROE इंडस्ट्री और सेक्टर्स पर डिपेंड करती है जो की अलग-अलग इंडस्ट्रीज में अलग अलग तरीके का कंपटीशन हो सकता है जिसका कारक टोटल ROE पर पड़ता है एवरेज ROE पर पड़ता है।


सब कुछ बराबर है अगर सब कुछ बराबर है तो एक इंडस्ट्री का एवरेज ROE कम हो सकता है अगर वह टक्कर का क्षेत्र है और अधिक सर्च की जरूरत होती है मुनाफा कमाने के लिए वही कम कम कंपटीशन वाले इंडस्ट्रीज में जहां मुनाफा कमाने के लिए कम एसेट की जरूरत होती है वहां एवरेज ROE अधिक हो सकता है।


ROE को कैलकुलेट करने के लिए एनालिस्ट कंपनी के नेट इनकम को एवरेज शेयर होल्डर सिक्योरिटी से डिवाइड करते हैं क्योंकि शेयरहोल्डर्स के इक्विटी असेट्स माइनस लायबिलिटीज के बराबर होता है ROE कंपनी के नेट सेट पर वापस ही काम आफ होता है क्योंकि अकाउंटिंग पीरियड में इक्विटी की संख्या बदलती रहती है इसलिए एक एवरेज शेयर होल्डर की इक्विटी का इस्तेमाल किया जाता है।


ROE की लिमिटेशन क्या हैं?(Limitations of ROE)



1. एक बहुत ज्यादा ROE हमेशा पॉजिटिव नहीं होता। बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ ROE कई समस्याओं का संकेतक हो सकता है, जैसे की कंपनी का अस्थाई लाभ और अत्यधिक कर्ज़।


2.ROE का एक समय से दूसरे समय के बीच बहुत ज्यादा बदल जाना, यह एकाउंटिंग मेथड्स के अव्यवहार का संकेतक हो सकता है।


3.एक नेगेटिव ROE जिसका कारण कंपनी का नेट लॉस या नेगेटिव शेयरहोल्डर्स  इक्विटी है उसे कंपनी का विश्लेषण करने के लिए या दूसरी कंपनी के साथ तुलना करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। ऐसी सिचुएशन में ROE शब्द का इस्तेमाल ही गलत होता है क्योंकि इसमें कोई रिटर्न नहीं होता है। 


4.ROE अलग-अलग इंडस्ट्रीज में काम करने वाली अलग-अलग कंपनी को तुलना करने के लिए हमेशा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि विभिन्न सेक्टर में अलग-अलग ROE हो सकता है खास करके जब कंपनी के अलग-अलग ऑपरेटिंग मार्जिन, स्ट्रक्चर्स होते हैं इसके अलावा बड़ी कंपनी प्रभावी होते हैं, नए और छोटी फर्म्स को उनसे कंपेयर करना बहुत ही मुश्किल हो सकता है।



बाकी सभी निवेश करने से पहले किसी भी कंपनी के जांच करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले टूल्स की तरह ROE भी सिर्फ एक मात्र मेट्रिक है जिससे कंपनी के ओवरऑल फाइनेंशियल्स का एक हिस्सा पहचाना जा सकता है निवेश करने से पहले एक कंपनी के फाइनेंशियल हेल्थ का पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए सभी फैक्टर्स को चेक करना बेहद महत्वपूर्ण है।



ROE को प्रभावित करने वाले फैक्टर

क्या ज़्यादा ROE वाली कंपनियां बढ़िया होती हैं?


अगर किसी कंपनी का ROE नेगेटिव है तो इसका मतलब है कि वह समय कि नेट इनकम नेगेटिव है मतलब नुकसान इसका यह अर्थ है कि शेयर होल्डर अपनी कंपनी में किए हुए निवेश में नुकसान उठा रहे हैं नए और बढ़ रहे कंपनी इसके लिए एक नेगेटिव ROE आम बात है लेकिन अगर नेगेटिव ROE लंबे समय तक बना रहे तो यह परेशानी की निशानी हो सकता है


ROE बढ़ने का कारण है कि कंपनी का नेट इनकम बढ़ रहा है बाकी सब बराबर होने पर यदि कंपनी के बाकी सभी चीजें बराबर हैं या वह भी बढ़ रही है और ROE भी बढ़ रहा है तो इसका मूलभूत कारण कंपनी की नेट इनकम बढ़ना हो सकता है।


ROE को बढ़ाने का एक तरीका शेयरहोल्डर्स  इक्विटी की वैल्यू कम करना है क्योंकि इक्विटी असेट्स माइनस लायबिलिटीज के बराबर होती है लायबिलिटीज को बढ़ाना जैसे कि अधिक कर्ज से फाइनेंस लेना एक तरीका है ROE को आर्टिफिशली बढ़ाने का बिना कारोबार की लाभदायकता को बिना बढ़ाए। इसका असर और भी बढ़ जाता है अगर वह कर्ज शेयर बाय बॉक्स में इस्तेमाल किया जाए जिससे इक्विटी की क्वांटिटी कम हो जाती है।


अंत में ROE एक आम फाइनैंशल मेट्रिक है जो यह बताता है कि कंपनी अपने रिसोर्सेज का उपयोग करके कितना मुनाफा जनरेट कर रही है लेकिन इसमें कंपनी की पूरी फाइनेंस इन स्ट्रक्चर इंडस्ट्री और कंपटीशन के परफॉर्मेंस को बिना एनालाइज के समझने में मुश्किल होती है।


निवेशकों के लिए ध्यान में रखने वाली बातें: 


जब निवेशक ROE को देखते हैं तो उन्हें कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे 


1.लाभ 


ROE का कैलकुलेशन कंपनी के लाभ या नेट इनकम के आधार पर होता है। निवेशकों को यह ध्यान देना चाहिए कि कंपनी के लाभ का ट्रेंड कैसा चल रहा है, क्या वह लगातार लाभ में है या वह बढ़ रहा है या घट रहा है नेट इनकम की बढ़ती हुई और लगातार ग्रोथ अच्छी ROE की निशानी होती है 


2.शेयरहोल्डर्स इक्विटी 


ROE के कैलकुलेशन में कंपनी कंपनी के शेयर होल्डर की इक्विटी भी देखी जाती है। शेयरहोल्डर्स  इक्विटी वह रकम होती है जो कंपनी के शेयर कंपनी में निवेश की है इसलिए निवेशकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कंपनी के शेयर होल्डर की इक्विटी में भी लगातार ग्रोथ हो रही हो क्योंकि ROE शेयरहोल्डर्स इक्विटी के साथ जुड़ा हुआ है।


3. इंडस्ट्री ऐवरेज 


निवेशकों को अपने निवेश से पहले निवेश करने से पहले इंडस्ट्री का एवरेज ROE के साथ जिस भी कंपनी में भी निवेश करना चाहते हैं उसके ROE को उस इंडस्ट्री एवरेज के साथ कंपेयर करना चाहिए यदि कंपनी का ROE इंडस्ट्री एवरेज से अच्छा है तो यह कंपनी में एक कॉम्पिटेटिव एडवांटेज या अच्छी फाइनेंसर परफॉर्मेंस के संकेत हो सकते हैं लेकिन यदि इंडस्ट्री एवरेज से कम ROE है तो कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी में कमी की सूचना तो यह कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी में कमी का संकेत हो सकता है।


4. डेट 


निवेशकों को कंपनी के ऊपर डेप्ट को भी ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि डेप्ट का इस्तेमाल ROE पर प्रभाव डाल सकता है यदि कंपनी अत्यधिक कार्य का इस्तेमाल कर रही है और ब्याज के भुगतान उसकी लाभदायक था पर बुरा असर डाल रही है तो ROE कम हो सकता है निवेशकों को ध्यान देना चाहिए कि कंपनी अपने कर्ज को किस तरह से मैनेज करती है और ROE को नकारात्मक दिखाने वाले जोखिम को हैंडल करने की कोशिश करती है।


5. लॉन्ग टर्म एस्पेक्ट्स 


निवेशकों को ROE को लंबे समय के उद्देश्य से एनालाइज करना चाहिए क्योंकि ROE 1 साल या एक क्वार्टर के अंदर कंपनी की परफॉर्मेंस को अच्छे से नहीं दिखा सकती है ROE के ट्रेंड और कंसिस्टेंसी को देखकर निवेशकों को कंपनी में लॉन्ग टर्म फाइनेंसियल परफॉर्मेंस को समझना चाहिए।


यह सभी एस्पेक्ट्स को समझकर निदेशकों को ROE के आधार पर कंपनी की फाइनैंशल परफॉर्मेंस का मूल्यांकन करना चाहिए और इसी आधार पर निवेश के डिसीजन लेना संभव हो सकता है।



Return On Equity( ROE) Key Takeaways:


ROE, यानी "Return on Equity", कंपनी अपने शेयरहोल्डर्स की equity पर कितना मुनाफ़ा कमाती है।


ROE का महत्व यह बताता है कि कंपनी अपने शेयरहोल्डर्स के लिए कितना मुनाफ़ा कमाती है। 


अगर ROE अच्छा है, तो यह दिखाता है कि कंपनी अपने पैसे को अच्छे तरीके से इस्तेमाल कर रही है और शेयरहोल्डर्स को मुनाफ़ा दे रही है।


अगर ROE प्रतिशत ज़्यादा है, तो समझो कि कंपनी अच्छा मुनाफ़ा कमा रही है। 


सरल शब्दों में, ROE यह बताती है कि कंपनी शेयरहोल्डर्स के लिए कितना मुनाफ़ा कमाती है और पैसे को कितनी अच्छी तरह से इस्तेमाल करती है। लेकिन सही समझने के लिए, इंडस्ट्री स्टैंडर्ड्स और दूसरे वित्तीय मापदंडों को भी ध्यान में रखना ज़रूरी है।


विभिन्न ROE क्या हैं?


ROE vs ROIC


रिटर्न ऑन इक्विटी और रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट कैपिटल दोनों ही फाइनेंशियल रेश्योस है जो एक कंपनी की परफॉर्मेंस को मेजर करते हैं लेकिन इन दोनों रेश्योस के कैलकुलेशन और इंटरप्रिटेशन अलग-अलग हो सकते हैं।

यह एक रेश्यो है जो कंपनी के नेट इनकम को शेयर होल्डर्स के इक्विटी के साथ कंपेयर करता है इसका उद्देश्य है यह देखना कि कंपनी के शेयर होल्डर्स की क्वालिटी के बेस पर कंपनी कितना प्रॉफिट जनरेट कर सकती है शेयरहोल्डर्स  इक्विटी कंपनी के शेयर होल्डर्स द्वारा दिए गए पैसों का हिस्सा होता है ROE की कैलकुलेशन नेट इनकम को शेयर होल्डर की क्वालिटी से डिवाइड करके किया जाता है।


जबकि Return on Invested Capital (ROIC) एक और रेश्यो है जो कंपनी के कैपिटल के सभी सोर्सेस जैसे शेयरहोल्डर्स की इक्विटी और डेट को कंसीडर करते हुए कंपनी के अर्निंग्स को मेजर करता है। इसका उद्देश्य यह देखना है की कंपनी अपनी अवेलेबल कैपिटल का कितना अच्छे से उपयोग करके पैसे कमा सकती है।


इसकी गणना करने के लिए सबसे पहले शेयर होल्डर्स की इक्विटी को डेट को जोड़ा जाता है फिर उसे नेट इनकम से विभाजित किया जाता है। 


ROE और ROIC में फर्क यह है कि ROE में सिर्फ शेयर होल्डर की इक्विटी का परफॉर्मेंस देखा जाता है जबकि ROIC कंपनी के पास स्थित कैपिटल के परफॉर्मेंस को मैच करता है। ROIC शेयर होल्डर की इक्विटी के अलावा कंपनी के दूसरे सोर्स ऑफ कैपिटल को भी ध्यान में रखता है।


उदाहरण के तौर पर अगर हम रिलायंस इंडस्ट्रीज और टाटा ग्रुप की ROE और ROIC को कंपेयर करना चाहते हैं तो हम इन कंपनी के पब्लिकली इश्यूड फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। ROE का कैलकुलेशन करने के लिए नेट इनकम को शेयरहोल्डर्स की इक्विटी से डिवाइड करना होता है जबकि ROIC के कैलकुलेशन में नेट इनकम को शेयरहोल्डर्स  इक्विटी और डेट के सम से डिवाइड करते हैं।


ROE vs ROA 


ROE vs ROA : इन दोनों में एक सिमिलरिटी है की यह दोनों ही कंपनी कितनी किफायती तरीके से लाभ जनरेट करने की कैपेसिटी रखती है, यह दर्शाते हैं, पर ROE नेट इनकम को नेट एसेट्स से कम्पेयर करता है, जबकि ROA सिर्फ कंपनी के असेट्स को बिना लायबिलिटी को घटाए ही कंपेयर कर लेता है। दोनों ही केस में उन कंपनी में जिनमें अपने ऑपरेशंस के लिए काफी असेट्स की जरूरत होती है वहां एवरेज रिटर्न कम होने के चांसेस होते हैं।



Return On Equity (ROE) FAQs : 


ROE से क्या मतलब है?

ROE का मतलब है "Return on Equity" यानी इक्विटी पर रिटर्न।


ROE की जानकारी कहाँ से प्राप्त करें ?

किसी भी कंपनी के ROE की जानकारी आपको विभिन्न स्केनर द्वारा आसानी से प्राप्त हो सकती है।


किसी भी कंपनी का ROE कितना होना चाहिए?

किसी भी कंपनी का ROE कितना होना चाहिए यह कंपनी के उद्देश्यों और उसकी इंडस्ट्री टाइप के सेटिंग पर निर्भर करता है।


शेयर मार्केट में ROE क्या होता है उदाहरण सहित?

शेयर मार्केट में ROE कंपनी की आर्थिक प्रदर्शन को मापने के लिए उपयोग होता है। उदाहरण के लिए, 15% ROE इसका मतलब है कि कंपनी अपने शेयरहोल्डर्स को 15% का प्रतिफल प्रदान कर रही है।


आरओई कितना अच्छा है?

व्यापारिक दृष्टिकोण से ज्यादा ROE अच्छा होता है क्योंकि यह कंपनी के अच्छे मैनेजमेंट, स्वास्थ्य और योग्यता को दर्शाता है।


आप इक्विटी पर रिटर्न की गणना कैसे करते हैं?

ROE = (नेट आय / इक्विटी) * 100


क्या इक्विटी पर ज्यादा रिटर्न अच्छा है?

इक्विटी पर ज्यादा रिटर्न अच्छा होता है क्योंकि यह दिखाता है कि कंपनी अपने पूंजी पर अधिक लाभ प्राप्त कर रही है।


क्या 25% आरओई अच्छा है?

25% ROE अच्छा हो सकता है, लेकिन इसे विभिन्न मार्गदर्शकों के साथ मिलकर निर्धारित करना चाहिए, क्योंकि यह उद्यमिता और बाजार की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।


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