Liability kya hoti hai | लाइबिलिटी क्या होती है

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Liability kya hoti hai | लाइबिलिटी क्या होती है


By Javed / July 08,2023:


लाइबिलिटी कहते हैं किसी भी तरह के भुगतान को जो कर्ज़ के , लोन के या किसी भी तरह की जरूरत के बदले में खर्च होने वाली राशी को।


चाहे कोई कंपनी हो या कोई इंडिविजुअल सबके साथ फाइनेंस जुड़ा होता है। सबके पास अपने इनकम के स्त्रोत होते हैं जिनसे वह कमाई करते हैं। अब कमाई है तो खर्च भी होंगे। सभी तरह के खर्च को लायबिलिटी कहा जाता है।


लायबिलिटी ऐसी कोई भी चीज हो सकती है जो आपकी जेब से खर्च कराती हो। लायबिलिटी क्या है इस बात को समझने के लिए आप रिच डैड पूअर डैड किताब पढ़ सकते हैं जिसमे लेखक ने कैशफ्लो और लाइबिलिटी को बहुत अच्छे ढंग से समझाया है। 


अगर आसान भाषा में लायबिलिटी को समझा जाए तो, कंपनी या एक व्यक्ति के सभी तरह के जरूरत में होने वाले खर्च को लायबिलिटी कहते हैं। जैसे लोन ईएमआई, पुराने कर्जों का भुगतान, वर्तमान में जरूरत के खर्च को लायबिलिटी के कॉलम में रखा जाता है।


Liabilities kya hoti hai

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| शीर्षक | Liability kya hoti hai |


| श्रेणी | बिज़नस |


| विवरण | लाइबिलिटी क्या होती है , लायबिलिटी के प्रकार, एसेट और लाइबिलिटी में अंतर।  |


| वर्ष | 2023 |


| देश | भारत |



लायबिलिटी को उदाहरण से समझते हैं:

लायबिलिटी का मतलब किसी भी तरह की जरूरत पर खर्च होने वाला धन होता है। 

लायबिलिटी इंडिविजुअल और कंपनी दोनों की अपनी जरूरत के हिसाब से होती है। 

अगर किसी कंपनी या व्यक्ति की लायबिलिटी उसकी आय से ज्यादा है तो उसकी फाइनेंशियल स्थिति ठीक नहीं है।

लायबिलिटी को हमेशा कम करने की कोशिश करना चाहिए जिससे कुछ बचत की जा सके, अपनी फाइनेंशियल स्थिति को सुधारने के लिए।


उदाहरण :

हम एक व्यक्ति के उदाहरण से समझते हैं कि लायबिलिटी क्या है:

एक व्यक्ति जो किराने की दुकान चलाता है, जो एक मात्र उसकी आय का साधन है। व्यक्ति जो दुकान चलाता है वह रेंट पर ली गई है, उसके पास अपना घर है और वह अपने परिवार के साथ रहता है और अपना और अपने परिवार का जीवन यापन दुकान की आय से चलाता है।


व्यक्ति हर दिन अपनी दुकान से ₹5000 की सेल करता है मतलब हर महीने ₹1.5 लाख का रेवेन्यू कमाता है।


उसे दुकान का रेंट ₹2500 प्रति माह देना होता है, हर महीने बिजली का बिल भरना होता है। हर महीने अपने व्यापार के लिए समान भी खरीदना होता है। इस तरह के सभी खर्च उसके व्यापार की लाइबिलिटी होते हैं।


व्यक्ति हर महीने ₹15 से ₹20 हजार रुपए प्रॉफिट कमा लेता है अपने छोटे व्यापार से। अब उसके परिवार के और उसके भी निजी खर्चे हैं जैसे बिजली बिल, फोन बिल, लोन ईएमआई, घर की जरूरतों जैसे खाना, पीना, कपड़े, बच्चों की स्कूल फीस यह सब तरह के खर्च भी लाइबिलिटी हैं।


लायबिलिटी क्या है आपको उदाहरण से समझ आया होगा, हमने लेख में आगे लायबिलिटी से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियां लिखी हैं। लायबिलिटी से जुड़े महत्वपूर्ण सवालों के जवाब हमने आपको लेख के माध्यम से देने की कोशिश की है।


लाइबिलिटी (liabilities) meaning in hindi:

हिंदी: लायबिलिटी = दायित्व, देनदारियां, जिम्मेदारियां। 


लाइबिलिटी में क्या क्या आता है:

1) वित्तीय दायित्व (financial liability):

वित्तीय दायित्वों में किसी भी कंपनी के द्वारा बहुत ही आवश्यक रूप से चुकाए जाने वाले दायित्व शामिल होते हैं जैसे, लोन, डेट (Debt), बाध्यताएं (payables) और वित्तीय पूंजी, आदि।


2) कार्यकारी लायबिलीटी (executive liability):

एग्जीक्यूटिव लायबिलिटी में किसी भी कंपनी के मैनेजमेंट के मेंबर्स के दायित्वों को शामिल किया जाता है जैसे fiduciary duties का निभाना, फाइनेंशियल रिपोर्ट्स में ट्रांसपेरेंट और सही जानकारी प्रदान करना, कॉरपोरेट गवर्नेंस को बेहतर बनाना, आदि।


3) कानूनी दायित्व (Legal liabilities):

किसी भी कंपनी के लीगल दायित्वों में कंपनी से जुड़े लीगल केसेज यानी अदालती मामले, न्यायिक फैसले और कंपनी से जुड़े कानूनी मुद्दों को शामिल किया जाता है, मतलब इसमें इनका पता चलता है।


4) सरकारी दायित्व (Governmental liability):

कंपनी के सरकारी दायित्वों में सरकारी और गैर - सरकारी संगठनों से लिए गए अनुदान (grants), सब्सिडी और सरकारी सहायता जो किसी भी कंपनी को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए दी जाती है, उससे संबंधित दायित्व शामिल होते हैं।


लाइबिलिटी के प्रकार/ Types of Liabilities:

लाइबिलिटी कितने प्रकार की होती हैं:


Current Liabilities:

किसी भी कंपनी के करेंट लायबिलिटी से मतलब है उन दायित्वों से जिनका कंपनी को एक वित्तीय वर्ष के अंदर के समय यानी 12 महीने या उससे कम समय में भुगतान करना आवश्यक होता है या कंपनी जिनका भुगतान कर देती है।


Current liabilities के उदाहरण (examples):

1) कम अवधि के उधार (Short - term borrowings):

इसमें कंपनी द्वारा लिए गए ऐसे कर्ज और लोन को शामिल किया जाता है जिनका भुगतान एक साल के अंदर कंपनी द्वारा किया जाना तय होता है। जैसे, बैंक ओवरड्राफ्ट, शॉर्ट टर्म लोन


2) व्यापारिक लोन या कर्ज़ (trade payables):

ट्रेड पेबल्स में कंपनी द्वारा व्यापार करने के दौरान, व्यापारिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए चुकाए जाने वाले दायित्व जिनका भुगतान कंपनी द्वारा अपने पार्टनरों, सप्लायरों और वेंडरों को करना होता है जिसमें इनवॉइस, परचेज ऑर्डर आदि शामिल होते हैं।


3) आयकर देय (tax payable):

Aaykar देय में कंपनी द्वारा तिमाही या वार्षिक आयकर, सेल्स टैक्स यानी सेवाकर और वैल्यू एडेड टैक्स (VAT) का सरकार को भुगतान किया जाना शामिल होता है।


नॉन करेंट (Non - Current liabilities) या लॉन्ग टर्म लायबिलिटी (Long term liabilities) क्या होती हैं:

किसी भी कंपनी को सुचारू रूप से चलाने के लिए कंपनी द्वारा बहुत से फाइनेंशियल (वित्तीय) कमिटमेंट्स में नॉन करेंट लायबिलिटी जिसे लॉन्ग टर्म लायबिलिटी भी कहा जाता है शामिल होती है।

लॉन्ग टर्म लायबिलिटी में कंपनी द्वारा लंबे समय में किए जाने वाले देनदारियों को शामिल किया जाता है जिनका भुगतान एक वित्तीय वर्ष से अधिक का होता है।


लॉन्ग टर्म लायबिलिटी के उदाहरण (examples):

1) लंबे समय अवधि के कर्ज़ ( Long term loans):

लॉन्ग टर्म लोन में कंपनी द्वारा एक साल से अधिक समय में भुगतान किए जाने वाली देनदारियां या लोन को शामिल किया जाता है जैसे, बैंक लोन, मॉर्टगेज लोन और कंपनी द्वारा जारी किए जाने वाले बॉन्ड्स।


2) बॉन्ड्स पेबल (Bonds payable):

बॉन्ड्स पेबल में कंपनी द्वारा जारी किए गए सुरक्षा पत्र यानी बॉन्ड्स शामिल होते हैं जिनका उपयोग निवेशकों से पूंजी जुटाने के लिए किया जाता है। इन बॉन्ड्स की एक तय मैच्योरिटी डेट होती है और इंटरेस्ट रेट होते हैं। जिनका भुगतान कंपनी द्वारा निवेशकों को किया जाता है और मैच्योरिटी पर कंपनी को निवेशकों का मूल धन यानी प्रिंसिपल अमाउंट भी चुकाना होता है।


3) लीव ऑब्लिगेशंस (Leave obligations):

कंपनी द्वारा लीज पर लिए गए संपत्तियों के उपयोग पर कंपनी को लंबी अवधि में लीज भुगतान करने होते हैं। जैसे रियल एस्टेट में जमीन या ऑफिस कार्य के लिए प्रिमिसेस (buildings), वाहन और इक्विपमेंट आदि।


4) पेंशन देनदारियां:

पेंशन लाभांश में कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों को भविष्य में उनके रिटायरमेंट या पेंशन के भुगतान की लायबिलिटी शामिल हैं।


5) डिबेंचर्स (Debentures):

डिबेंचर्स एक कंपनी के कर्ज़ इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं। ये लॉन्ग टर्म लायबिलिटी में शामिल होते हैं जिनपर कंपनी को फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट पर भुगतान करना होता है। डिबेंचर्स बॉन्ड्स की ही तरह काम करते हैं, फर्क सिर्फ इतना है, बॉन्ड्स पूंजी जुटाने के लिए उपयोग होते हैं जबकि डिबेंचर्स का उपयोग कर्ज़ में होता है।


आपरेटिंग लायबिलिटीज़ (Operating liabilities) क्या होती हैं:

ऑपरेटिंग लायबिलिटी किसी भी कंपनी के डे टू डे ऑपरेशंस यानी नियमित गतिविधियों को पूरा करने के लिए उनपर पड़ने वाले दायित्व होते हैं। इनमे ऐसे वित्तीय दायित्व शामिल होते हैं जो कंपनी के कार्यशील रहने के लिए आवश्यक होते हैं।


Operating liabilities examples (उदाहरण):

1. अकाउंट्स पेबल Accounts Payable 
2. कर्मचारियों की तनख्वाह Employees wages 
3. ट्रेड क्रेडिट Trade credit
4. फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस को चुकाए जाने वाले दायित्व 
5. Contractual यानी अनुबंधों से जुड़ी देनदारियां।


नॉन ऑपरेटिंग लायबिलिटी (Non operating liabilities) क्या होती हैं:

नॉन ऑपरेटिंग लायबिलिटी यानी गैर संचालनिक दायित्व किसी भी कंपनी के मुख्य बिजनेस या उसकी मुख्य गतिविधियों से नही जुड़ी होती हैं। बल्कि यह देनदारियां कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियों से हटके,  दूसरे इवेंट्स, प्रतिबंधों (restrictions) और अवसरों से जुड़ी होती हैं।


नॉन ऑपरेटिंग लायबिलिटी (Non operating liabilities) के उदाहरण (examples):

1. नॉन ऑपरेटिंग इनकम की देनदारियां 
2. व्यापारिक संपत्ति में होने वाले नुकसान के भुगतान
3. कानूनी मामलों से संबंधित देनदारियां
4. फाइनेंशियल ट्रांजैक्शंस के सेटलमेंट।

एसेट (Asset) और लाइबिलिटी (liability) में क्या अंतर है:

एसेट्स और लाइबिलिटी किसी भी कंपनी के फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स और बैलेंस शीट में आने वाले दो महत्वपूर्ण फंडामेंटल कंपोनेंट्स हैं, जो निवेशकों, एनालिस्टों, कंपनी के मैनेजमेंट और अन्य कंपनियों को कंपनी के फाइनेंशियल हेल्थ के बारे में जानकारी देती हैं।


यहां हम विस्तार से जानेंगे की एसेट्स और लायबिलिटीज में क्या अंतर होता है:


1.) Assets संपत्तियां:

एसेट्स कंपनी द्वारा own की जाने वाली संपत्तियां होती हैं, जिनसे लंबे समय में कंपनी की वैल्यू बढ़ती है। एसेट्स में कंपनी के ऐसे आर्थिक स्त्रोत शामिल होते हैं जिनकी मदद से कंपनी को लगातार या भविष्य में अच्छी इकोनॉमिक ग्रोथ हासिल हो और उसकी वैल्यू बढ़े। एसेट्स क्या होता है, इस पर ब्लॉग में विस्तार में लेख उपलब्ध है, उसे ज़रूर पढ़ें।


एसेट्स के कुछ उदाहरण हैं: कैश (नगद), इन्वेंटरी(स्टॉक), प्रॉपर्टी, प्लांट और इक्विपमेंट, लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट, इंटेंजिबल एसेट्स, आदि।


एसेट्स को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है:

1) करेंट असेट्स

यह वो एसेट्स होती हैं जिन्हें एक साल के अंदर कैश यानी नगद में बदला जा सकता हो।


2) नॉन करेंट असेट्स

ये लॉन्ग टर्म एसेट्स भी कहलाती हैं और इन्हें लंबे समय तक होल्ड किया जाता है।


एसेट्स किसी भी कंपनी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि ये रेवेन्यू उत्पन्न करती हैं जिससे कंपनी की वैल्यू में बढ़त होती है। कोई भी कंपनी अपनी संपत्तियों का उपयोग कर अपना कैशफ्लो बढ़ा सकती है, डेट चुका सकती है, और व्यवसाय की डे टू डे गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने में मदद ले सकती है।


2) Liabilities देनदारियां:

लाइबिलिटी का अर्थ है देनदारियां, जैसे की नाम से ही पता चल रहा है की यह कंपनी द्वारा लिए गए लोन, कर्ज, मॉर्टगेज, आदि की देनदारी को दर्शाती है, जिसका भुगतान करने के लिए या तो कंपनी को एसेट्स ट्रांसफर करनी पड़ती है या फिर अपने गुड्स और सर्विसेस देने पड़ते हैं।


लाइबिलिटी किसी भी कंपनी के डेट और दूसरे फाइनेंशियल दायित्वों को दर्शाती है जिसमे क्रेडिटर्स यानी लेनदारों के द्वारा किए गए कंपनी की संपत्तियों पर क्लेम भी शामिल होते हैं।


सरल भाषा में समझें तो एसेट्स कंपनी द्वारा ओन की जाने वाली संपत्तियां होती हैं जिनसे कंपनी की वैल्यू बढ़ती है और लाइबिलिटी कंपनी पर दूसरी पार्टी से लिए गए कर्ज़ आदि को दर्शाती है।


एसेट और लाइबिलिटी में अंतर किसी भी कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ और काम करने की क्षमता को दर्शाता है।


एक अच्छी और हेल्थी बैलेंस शीट वह होती है जिसमे कंपनी के पास अच्छी और ऊंची कीमत की संपत्तियां दर्शायी जा रही हों और लाइबिलिटी कम हों।


जरूरी बात:

आपको लाइबिलिटी और एसेट के बीच के अंतर को अच्छे से समझना चाहिए जिससे आप अपने कमाए गए धन को सही से मैनेज कर सकें। अपने खर्च को कम करने की कोशिश करें जिससे आप बचत ज्यादा कर पाएं और अपने लिए संपत्ति के कॉलम को बढ़ा पाएं जिससे आप खुदको आर्थिक रूप से मजबूत बना पाएंगे।


आप कोई भी काम करें, अपने महीने भर मेहनत करके कमाए गए रुपए को सही तरीके से मैनेज करना सीखें, अपने सारे खर्च को एक पेपर पर लिखें और गैर जरूरी खर्चों को कंट्रोल करने की कोशिश करें जिससे आपकी लायबिलिटी कम होगी।


अगर आप पूरे डिसिप्लिन से अपने खर्च को ट्रैक करोगे तो आप अपने कमाए गए रुपए को सही जगह खर्च करना सीखोगे और अपने लिए बचत कर पाओगे। जिससे आप अपने लिए कैश जमा कर सकते हैं, इमर्जेंसी फंड बना सकते हैं, अपने लिए रिटायरमेंट प्लान कर सकते हैं। आप बचत करके अपने भविष्य में पड़ने वाली जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकते हैं।


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