मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है/market capitalization kya hota hai

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मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है/market capitalization kya hota hai 


By Javed / July 14,2023:


Market capitalization जिसे सामान्य तौर पर मार्केट कैप कहा जाता है, किसी भी कंपनी के कुल शेयर्स की कुल कीमत होती है।


मार्केट कैप को सरल भाषा में समझें तो यह एक कंपनी के वर्तमान समय में मैलुजूद शेयर्स की कुल कीमत को दिखाता है। किसी भी कंपनी के मार्केट कैप पर उसकी मुनाफा कमाने की क्षमता और अवसरों का प्रभाव पड़ता है। यानी अगर कोई कंपनी जो अच्छा मुनाफा कमा सकती हो और उसके पास ढेर सारे अवसर मौजूद हों जिनसे वह लाभ कमा सके तो स्टॉक मार्केट यानी शेयर बाजार में उसके स्टॉक की कीमतों पर इसका सीधा- सीधा असर पड़ता है, जिससे कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन यानी मार्केट कैप प्रभावित होता है।


मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है/market capitalization kya hota hai

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| शीर्षक | मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है/market capitalization kya hota hai  |



| श्रेणी | स्टॉक मार्केट |


| विवरण | market capitalization meaning in hindi/ मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है/calculation/formula/free float market capitalisation क्या होता है।  |


| वर्ष | 2023 |


| देश | भारत | 


Market capitalization meaning in hindi:


मार्केट कैपिटलाइजेशन जिसे शॉर्ट में मार्केट कैप कहा जाता है इसका हिंदी भाषा में मतलब होता है "बाजार पूंजीकरण", जिसका मतलब होता है की यह किसी भी कंपनी की बाजार में कितनी पूंजी है, इसे दर्शाता है।


मार्केट कैप की गणना/Calculate Market Capitalization:


किसी भी कंपनी के कुल मार्केट कैप को निकालने के लिए कंपनी के शेयर्स की वर्तमान में चल रहे बाजार के भाव को कंपनी के बाकी शेयर्स (outstanding shares) से गुणा करना होता है।


मार्केट कैप फॉर्मूला/ capitalization formula:


मार्केट कैपिटलाइजेशन = प्रति शेयर का वर्तमान भाव × बाकी शेयर्स की कुल संख्या 

मार्केट कैप की गणना को एक उदाहरण से समझते हैं:

मान लें की एक कंपनी है xyz, जिसके स्टॉक बाजार में स्टॉक का अभी भाव है ₹100, और शेयर्स की कुल संख्या 1 करोड़ है, तो

मार्केट कैप = 100 × 1,00,00,000 = 1,00,00,00,000

यानी कंपनी xyz का मार्केट कैपिटलाइजेशन  ₹1 अरब है।


Market capitalization kya hota hai: मार्केट कैप, शेयर प्राइस और आउटस्टैंडिंग शेयर्स:


Market capitalization :


एक कंपनी की मार्केट कैपिटलाइजेशन (मार्केट कैप) उसकी बाजार में मौजूद शेयर्स और बाकी रहने वाले शेयर्स की संख्या और वर्तमान में बाजार में चल रहे उसके शेयर की कीमत को आपस में गुणा (multiply) करके निकालते हैं, यानी मार्केट कैप किसी भी कंपनी का कुल बाजार मूल्य होता है।

जब निवेशक और एनालिस्ट किसी भी कंपनी के शेयरों या उसकी मार्केट वैल्यू की जांच करना चाहते हैं तो इसके लिए वे कंपनी की मार्केट कैपिटलाइजेशन को चेक करते हैं।


शेयर मूल्य (share price):


शेयर प्राइस किसी भी कंपनी के बाजार में मौजूद एक शेयर का प्राइस होता है, जैसे xyz कंपनी के शेयर का प्राइस ₹132 है। 

शेयर प्राइस वह भाव होता है जिसपर शेयरहोल्डर्स या निवेशक शेयर खरीदते और बेचते हैं। शेयर बाजार में शेयर की सप्लाई और डिमांड यानी मांग और पूर्ति , कंपनी का प्रदर्शन , आर्थिक स्थिति, इंडस्ट्री में चल रहे ट्रेंड्स और अन्य कारक हैं जिनके प्रभाव से किसी भी कंपनी के शेयर की कीमत घटती या बढ़ती है।


बाकी शेयर्स(Outstanding shares):


आउटस्टैंडिंग शेयर्स यानी बाकी शेयर्स किसी भी कंपनी द्वारा जारी किए गए पब्लिक शेयरहोल्डर्स या निवेशकों के पास मौजूद शेयर्स होते हैं, जिन्हें आप "बाकी शेयर्स" या "विशेष शेयर्स" भी के सकते हैं।

एक कंपनी में शेयरहोल्डर्स की इक्विटी स्टेक और ओनरशिप को जानने के लिए आपको उसके आउटस्टैंडिंग शेयर्स की जांच करनी होगी। 

जब हम मार्केट कैप की गणना करते हैं तो आउटस्टैंडिंग शेयर्स का उपयोग करके कंपनी की कुल मार्केट वैल्यू निकालते हैं।

एक कंपनी के पास मौजूद आउटस्टैंडिंग शेयर्स की संख्या का पता करने के लिए आप उसके फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स, वार्षिक रिपोर्ट या फाइनेंशियल डिस्क्लोजर्स की जांच कर सकते हैं, जहां आपको सही सहींजनकारी मिल जाएगी। वहां आपको कुल जारी किए गए शेयरों, ट्रेजअरी शेयरों और पब्लिक द्वारा होल्ड किए जाने वाले शेयरों का विवरण दिया जाता है, जिसमे से पब्लिक द्वारा होल्ड किए जाने वाले शेयर आउटस्टैंडिंग शेयर्स के अंतर्गत आते हैं जिनका उपयोग मार्केट कैप को कैलकुलेट करने के लिए किया जाता है।


Market capitalization in hindi: types/श्रेणियां:


मार्केट कैप के आधार पर कंपनियों को अलग अलग श्रेणियों में बांटा जाता है, हम यहां कुछ प्रमुख मार्केट कैप के types आपके साथ सांझा कर रहे हैं:


1) लार्ज कैप कम्पनियां/ Large-cap companies:


लार्ज कैप कंपनियां बाजार में स्थित वह कंपनियां होती हैं जिनकी मार्केट कैप बहुत ज्यादा यानी ₹20,000 करोड़ से ज्यादा होती है। लार्ज कैप कम्पनियां सामान्य तौर पर स्थिरता और विश्वसनीयता को दर्शाती हैं। इनका व्यवसाय और ब्रांड पूरी तरह से स्थापित हो चुका होता है। लार्ज कैप कंपनियों के कुछ उदाहरण हैं - रिलायंस , इंफोसिस और एचडीएफसी।


2) मिड कैप कम्पनियां/ Mid-cap companies:


मिड कैप कम्पनियां जिन्हे आप "मध्यम मार्केट वर्ग" भी कह सकते हैं, इनकी मार्केट कैपिटल लार्जकैप और स्मॉलकैप कंपनियों के बीच की होती है यानी ₹20,000 करोड़ से ₹5,000 करोड़ के बीच में।

मिडकैप कंपनियों में ग्रो होने की अच्छी संभावना होती है क्योंकि इनका व्यवसाय अभी एक्सपैंड हो रहा होता है। स्मॉलकैप कंपनियों के उदाहरण आईआरसीटीसी (IRCTC) और श्रीराम फाइनेंस जैसी कंपनियां हैं।


3) स्माल कैप कम्पनियां/ Small - cap companies:


स्मॉलकैप कंपनियों का मार्केट कैप ₹5,000 करोड़ से कम  होता है और यह सामान्य तौर पर बहुत ज्यादा वोलेटाइल होती हैं। इनमें बहुत ज्यादा रिटर्न्स के साथ बहुत ज्यादा जोखिम भी होते हैं।

उदाहरण के लिए: Bata India, Exide industries और आईआईएफएल फाइनेंस।


मार्केट कैपिटलाइजेशन क्या होता है और हमें क्या दिखाता है:


मार्केट कैप किसी भी कंपनी में निवेश करने या उसकी जांच करने वालों के साथ बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी सांझा करता है, जैसे:


1) कंपनी का साइज:


मार्केट कैप आपको किसी भी कंपनी की वैल्यू या साइज के बारे में बताता है जिससे यह पता चलता है की कंपनी का व्यवसाय अच्छे से स्थापित है, ब्रांड वैल्यू कैसी है या कंपनी अभी शुरुआती धक्कों यानी संघर्ष कर रही है। इससे निवेशकों को कंपनी के लेवल और उसकी स्थिति के बारे में पता चलता है।


2) मार्केट परसेप्शन:


मार्केट कैप से निवेशकों को यह भी पता चल सकता है की कंपनी बाजार में कितनी प्रसिद्ध है, इसमें लिक्विडिटी यानी पूंजी की आवक किस प्रकार की है और निवेशकों का कंपनी के प्रति कैसा रुख है या उनके कंपनी के प्रति कैसे सेंटीमेंट्स हैं।


3) पोर्टफोलियो के बेंचमार्क:


मार्केट कैप का उपयोग निवेशकों द्वारा अपने पोर्टफोलियो की ओवरऑल बाजार के प्रदर्शन से यानी स्टॉक मार्केट इंडेक्स से तुलना करने के लिए भी किया जा सकता है।


फ्री फ्लोट Market cap kya hai:


Free float market capitalisation, एक कंपनी के मार्केट कैप से थोड़ा अलग होता है। फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन में आउटस्टैंडिंग शेयर्स जो की पब्लिक के पास होते हैं, सिर्फ उन्हें ही शामिल किया जाता है, जब इसकी गणना की जाती है तो जबकि, कुल मार्केट कैप में इंसाइडर्स और पब्लिक दोनों के शेयरों की गणना की जाती है फिर उसे शेयर के वर्तमान में चल रहे भाव से गुणा किया जाता है।


फ्री फ्लोट मार्केट कैप की गणना करने के लिए फॉर्मूला:

फ्री फ्लोट मार्केट कैप = आउटस्टैंडिंग शेयर्स की संख्या × शेयर का वर्तमान में चल रहा मूल्य।

फ्री फ्लोट मार्केट कैप का इस्तेमाल इंडेक्स प्रोवाइडर्स भी करते हैं जिसमें पब्लिक द्वारा कंपनी के कितने भाग own किए जा रहे हैं, इसका उन्हें सही सही अनुमान प्राप्त होता है।


मार्केट कैपिटलाइजेशन कैसे बढ़ता है?


किसी भी कंपनी के मार्केट कैपिटल के बढ़ने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ हम आपसे सांझा करने जा रहे हैं:


#1. कंपनी का प्रदर्शन: 


एक कंपनी कैसा प्रदर्शन कर रही है, इसका बहुत ज्यादा प्रभाव उसके स्टॉक प्राइस पर पड़ता है जिससे मार्केट कैप बढ़ या घट सकता है।

एक कंपनी के प्रदर्शन को किन किन चीजों से देखा जा सकता है:


 1. कंपनी का रेवेन्यू यानी राजस्व और प्रॉफिट ग्रोथ:


कंपनी अगर अच्छा रेवेन्यू जनरेट कर रही है और साथ ही उसके प्रॉफिट में ग्रोथ देखी जा सकती है, तो यह एक अच्छा संकेत हो सकता है जिसके कारण कंपनी के मार्केट कैप में बढ़ोतरी हो सकती है।


2. मार्केट में शेयर की प्राइस और कंपेटीटिव एडवांटेज:


बाजार में चल रहे कंपनी के शेयर का भाव यदि ऊपर जाता है तो इससे मार्केट कैप पर असर पड़ता है। साथ ही यदि कंपनी अपने क्षेत्र में अपने कंपटीटर कंपनियों से अच्छा प्रदर्शन कर रही हो तो इसका लाभ भी कंपनी को प्राप्त होता है जिसके असर से शेयर प्राइस बढ़ोतरी होती है।


3. कंपनी के मैनेजमेंट की कार्यकुशलता:


अगर कंपनी के अंदरूनी मैनेजमेंट की कार्य कुशलता अच्छी है, और वे लगातार कंपनी को भविष्य में ग्रो करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए असरदार तरीके से काम में लगे हुए हैं, तो इससे भी कंपनी को बहुत फायदा पहुंचता है, हालांकि इससे कंपनी के शेयर प्राइस को डायरेक्ट बढ़त नही प्राप्त होती है लेकिन जब अच्छा मैनेजमेंट हो तो कंपनी के भविष्य में ग्रो होने की संभावनाऐं बढ़ जाती हैं।


#2 इंडस्ट्री ट्रेंड्स और मार्केट कंडीशंस:


कंपनी पर बहुत ज्यादा प्रभाव डालती है उसकी इंडस्ट्री टाइप, यानी एक कंपनी किस सेक्टर में काम करती है, उसके पियर्स कौन हैं, इंडस्ट्री के एवरेज किस तरह के हैं आदि जिनसे कंपनी की लाभदायकता और दूसरी चीजों पर फर्क पड़ने से उसके शेयर प्राइस में भी असर पड़ता है।


1. कंपनी का सेक्टर में स्पेसिफिक इनफ्लुएंस:


कंपनी जिस इंडस्ट्री में काम करती है, उस पार्टिकुलर इंडस्ट्री या सेक्टर में कंपनी का क्या योगदान है, इससे उसके इनफ्लुएंस का पता चलता है। जैसे HDFC है, अपने सेक्टर में सबसे ज्यादा प्रभावशाली और सबसे ज्यादा योगदान देने वाली जिसके कारण इसके स्टॉक प्राइस में उछाल देखने को मिलता है साथ ही इसका मार्केट कैप भी बढ़ता जाता है।


2. मार्केट वोलेटिलिटी और इन्वेस्टर्स सेंटीमेंट:


एक कंपनी के शेयर में वॉलेटिलिटी कितनी है, यानी, कितना ज्यादा इसमें लोग निवेश या ट्रेड करते हैं जिसके कारण इसके शेयर प्राइस में उछाल या गिरावट आ जाती है। इसके साथ ही निवेशकों के कंपनी के प्रति कैसे भाव हैं, क्या सेंटीमेंट्स हैं, जैसे एसबीआई बैंक है, देश का बैंक है, लोग इसमें अपना निवेश करना पसंद करते हैं, ऐसे ही टाटा पर लोगों को भरोसा है, रिलायंस के लंबे समय तक चलते रहने का विश्वास है लोगों में जिसके कारण इनके शेयर प्राइस बढ़ते रहते हैं और साथ ही मार्केट कैप भी बढ़ता है।


#3 शेयर बायबैक और शेयर इश्यू:


एक कंपनी के मार्केट कैप पर इसका सीधा असर देखा जा सकता है जब वह अपने शेयर्स को बायबैक करती है यानी वापस खरीदती है या नए शेयर्स इश्यू यानी जारी करती है फिर चाहे बोनस शेयर हों या किसी अन्य प्रकार के, इनका प्रभाव शेयर की कीमतों पर देखने को मिलता है। जैसे वेदांता के अपने शेयर्स को बायबैक करने पर उसमे उछाल देखा जा सकता था।


मार्केट कैपिटलाइजेशन की कमियां/ Limitations of Market capitalization:


किसी भी निवेशक को किसी कंपनी में निवेश करने के डिसीजन को लेने के लिए विभिन्न फैक्टर्स की जांच करनी पड़ती है, जिसमे से एक मार्केट कैपिटलाइजेशन भी होता है, हालांकि इसके अकेले के भरोसे निवेश नहीं किया जा सकता है क्योंकि बाकी तमाम फैक्टर्स के समान ही इसमें भी कुछ कमियां हैं जिनके आधार पर यह आपको गलत निवेश डिसीजन की तरफ प्रोत्साहित कर सकता है।


1. काम वॉल्यूम वाले स्टॉक्स में डिस्टोर्शन:


जिन स्टॉक्स में वॉल्यूम यानी ट्रेडर्स और निवेशकों का कम दख़ल होता है, ऐसे स्टॉक्स में या कंपनी में मार्केट प्राइस कंपनी के उचित मूल्य को सही तरीके से रिफ्लेक्ट नहीं करता है।


2. शॉर्ट टर्म स्टॉक प्राइस मूवमेंट्स पर ज्यादा ध्यान देना:


मार्केट कैप किसी भी कंपनी के स्टॉक के मूल्य से प्रभावित हो जाता है, जो शॉर्ट टर्म में विभिन्न कारणों की वजह से जैसे मार्केट सेंटीमेंट, निवेशकों के स्पेक्युलेशन के कारण बहुत ज्यादा फ्लक्चुएट कर सकते हैं, जिसके कारण यह कंपनी के लॉन्गटर्म में फंडामेंटल वैल्यू और ग्रोथ प्रोस्पेक्ट्स की सही गणना नहीं कर सकता है।


3. कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ का अधूरी मात्रा में रिप्रेजेंटेशन:


मार्केट कैप किसी भी कंपनी के कर्ज़ या डेट को, एसेट्स यानी परिसंपत्तियों को और फाइनेंशियल हेल्थ को ध्यान में नहीं लाता है।


4. बड़ी कंपनियों को फेवर करना:


मार्केट कैप ऐसी बड़ी कंपनियों को ज्यादा फेवर करता है जिनके स्टॉक की कीमत ज्यादा होती हेयर साथ ही आउटस्टैंडिंग शेयर्स भी अधिक होते हैं। इसका मतलब है जिन कंपनियों के स्टॉक की कीमत कम होती है और छोटी कंपनियों की वैल्यू मार्केट कैप के आधार पर कम आंकी जा सकती है जिस कारण किसी महत्वपूर्ण या अच्छी ग्रोथ की संभावनाओं वाली कंपनियों का गलत कर सकता है।


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