Financial leverage kya hai| फाइनेंशियल लीवरेज क्या है

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Financial leverage kya hai| फाइनेंशियल लीवरेज क्या है


By Javed / 22 November 2023:


फाइनेंशियल लीवरेज का इस्तेमाल इन्वेस्टर और ट्रेडर अपने प्रॉफिट को बढ़ाने के लिए करते हैं। फाइनेंशियल लीवरेज कम लागत लगाकर ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लीवरेज स्टॉक, रियल एस्टेट जैसे निवेश में निवेशक इस्तेमाल करते हैं जिससे निवेशक ज्यादा धन कमा सकें।


स्टॉक मार्केट में कुछ कंपनी के स्टॉक ऑप्शन ट्रेड होती है। ऑप्शन ट्रेड में स्टॉक की मार्केट प्राइस से ऑप्शन में स्टॉक को कम धन पर खरीदा जा सकता है। इसका एक लॉट होता है जिसे निवेशक को कम दाम में, ज्यादा शेयर खरीदने को मिलते हैं, जिसे लीवरेज कहा जाता है।


फाइनेंशियल लीवरेज में जितनी ज्यादा प्रॉफिट की संभावना होती है उतना ज्यादा लॉस की भी संभावना होती है। अगर आपको इन्वेस्टिंग और ट्रेडिंग की बहुत थोड़ी नॉलेज है तो आपको फाइनेंशियल लीवरेज से दूर रहना चाहिए। फाइनेंशियल लीवरेज का उपयोग प्रोफेशनल लोग करते हैं और वह अपने ट्रेड स्टॉप लॉस के साथ लेते हैं उनका रिस्क मैनेजमेंट होता है, जिससे अगर उनका ट्रेड गलत भी होता है तो उन्हें ज्यादा प्रभावित नहीं करता है, लेकिन नए निवेशक को बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है।


Financial leverage kya hai| फाइनेंशियल लीवरेज क्या है

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| शीर्षक | Financial leverage kya hai| फाइनेंशियल लीवरेज क्या है |

| श्रेणी | स्टॉक मार्केट |

| विवरण | Financial leverage kya hai| फाइनेंशियल लीवरेज क्या है |


| वर्ष | 2023 |

| देश | भारत |


Financial leverage stock| फाइनेंशियल लीवरेज स्टॉक:


फाइनेंशियल लीवरेज का इस्तेमाल किसी स्टॉक को खरीदने के लिए इस तरह से करते हैं। एक निवेशक जब किसी कंपनी के स्टॉक में शार्ट टर्म के लिए निवेश करना चाहता है वह कंपनी के फंडामेंटल और टेक्निकल दोनों तरह से रिसर्च करता है। निवेशकों को लगता है कंपनी टेक्निकल और फंडामेंटल दोनों रिसर्च के हिसाब से निवेश करने के लिए बिल्कुल सही समय है या नहीं।


डिलीवरी स्टॉक क्या होता है


स्टॉक मार्केट में स्टॉक को खरीद कर डिलीवरी ली जाती है। डिलीवरी में स्टॉक अपने मार्केट प्राइस पर खरीदा जा सकता है।


ऑप्शन स्टॉक क्या है


ऑप्शन स्टॉक डिलीवरी स्टॉक से अलग खरीदी होती है। ऑप्शन स्टॉक की प्राइस डिलीवरी स्टॉक से कम होती है। ऑप्शन स्टॉक में स्टॉक को लॉट में खरीदा और बेचा जा सकता है।


स्टॉक के निवेशक लेवरेजिंग कैसे करते हैं:


एक निवेशक को किसी कंपनी का स्टॉक खरीदना है और लीवरेज करना चाहता है, तो वह सभी कंपनी के स्टॉक में नहीं कर सकता। वह इसलिए सभी कंपनी के स्टॉक में ऑप्शन ट्रेड नही होती है। कुछ कंपनी के स्टॉक में ऑप्शन ट्रेड नही होती है। लीवरेज का इस्तेमाल ऑप्शन में ट्रेड होने वाली कंपनी में ही किया जा सकता है।


स्टॉक में ऑप्शन ट्रेड कैसे करें:


निवेशक लीवरेज करने के लिए ऑप्शन में ट्रेड होने वाले स्टॉक को चुनता है, टेक्निकल और फंडामेंटल रिसर्च करता है और स्टॉक के ऑप्शन के लॉट को खरीदता है। ऑप्शन ट्रेड में एक एक्सपायरी डेट भी होती है जिससे पहले निवेशक को ट्रेड से एग्जिट करना होता है। चाहे प्रॉफिट हो या लॉस हो, एक्सपायरी के बाद उस ऑप्शन की वैल्यू 0 हो जाती है।


स्टॉक में लीवरेज कैसी होती है:


कोई व्यक्ति को स्टॉक में लीवरेजिंग करने के लिए किसी भी कंपनी के फ्यूचर ऑप्शन में ट्रेड करना होता है।


उदाहरण के लिए:


मान लीजिए एक कंपनी है XYZ Ltd, जिसका मार्केट प्राइस ₹100 है। इसी XYZ कंपनी का प्राइस ऑप्शन ट्रेड में ₹20 हो सकता है लेकिन इसमें एक लॉट में ट्रेड होता है। निवेशक अपनी कैपिटल के हिसाब से जितने भी लॉट खरीद सकते हैं, जिससे निवेशक को कम कैपिटल से ज्यादा क्वांटिटी में ट्रेड करने को मिलता है जिससे आप लीवरेजिंग कर सकते हैं। ₹100 के भाव की वैल्यू की चीज़ें ₹20 रुपए में ट्रेड करना और कम रुपए के इस्तेमाल से ज्यादा वैल्यू की चीज को ट्रेड करके अपने प्रॉफिट को बढ़ाना फाइनेंशियल लीवरेजिंग होती है।


फाइनेंशियल लीवरेज के फ़ायदे:


प्रोफेशनल निवेशक लीवरेज का फायदा लेकर अपने प्रॉफिट को बढ़ाते हैं जिससे उनका कैपिटल बहुत तेज़ी से बढ़ता है। लीवरेजिंग करने से उनके प्रॉफिट कई गुना बढ़ जाते हैं और वह बहुत तेजी से अपनी वेल्थ को बढ़ाते हैं और अपने कैपिटल का सही इस्तेमाल कर अपने लिए बहुत सारी संपत्ति बना लेते हैं।


फाइनेंशियल लीवरेज के नुकसान:


फाइनेंशियल लीवरेज में जिस प्रकार प्रॉफिट कही गुना तक बढ़ जाता है उसी तरह नुकसान भी कई गुना बढ़ता है, लीवरेज दोनों तरफ एक जैसा होता है। अगर आपकी ट्रेड सही होती है तो प्रॉफिट ज्यादा होगा, अगर आपकी ट्रेड गलत होती है तो आपको नुकसान भी बहुत ज्यादा होगा। ऑप्शन ट्रेड में एक्सपायरी भी होती है, अगर समय पर आप अपने ट्रेड से बाहर नहीं आए हैं तो आपकी पूरी राशी डूब सकती है। अगर आपको इन्वेस्टिंग और ट्रेडिंग का अनुभव कम है तो आपको लीवरेज से बचना चाहिए। आप अपने कैपिटल को दूसरे विकल्प से शेयर बाजार में बढ़ा सकते हैं। आपको लॉन्ग टर्म के लिए अच्छी कंपनी में निवेश करना चाहिए। अगर आप शॉर्ट टर्म से अच्छा पैसा बनाना चाहते हैं तो स्विंग ट्रेडिंग कर सकते हैं। स्विंग ट्रेडिंग में किसी भी कंपनी के स्टॉक को कुछ सप्ताह या महीने के लिए खरीदा जाता है। स्टॉक के टारगेट प्राइस पर पहुंचने पर स्टॉक को बेचकर प्रॉफिट बुक किया जाता है।


रियल एस्टेट में लीवरेजिंग कैसे होती है:


इस तरह निवेशक रियल एस्टेट में भी लेवरेजिंग करते हैं। एक अच्छा ट्रेडर किसी भी संपत्ति की वैल्यू को अच्छे से समझ सकता है और वह इसका फायदा अपने ट्रेड में उठाता है।


उदाहरण 


एक अच्छा ट्रेडर और निवेशक किसी अच्छे मौके की तलाश में हमेशा रहता है, जब उसे कोई अच्छी संपति अपने वैल्यू से कम में मिलती है तो वह उस संपत्ति के मालिक से कुछ टोकन मनी देकर 6 या 12 महीने का अनुबंध (agreement) करता है, 10% रकम देकर 80% बची हुई राशि को 6 या 12 महीने के अंदर बची हुई राशि देकर संपत्ति अपने नाम या अपने किसी अन्य व्यक्ति के नाम संपत्ति का रजिस्ट्रेशन करवा लेगा।


अनुबंध करने के बाद ट्रेडर के पास अब बाकी राशि देने के लिए समय है, इस समय में वह अपनी खरीदी वैल्यू से ज्यादा कीमत देने वाला उस  संपत्ति का बायर तलाश करता है। समय से पहले अगर कोई बायर प्रॉपर्टी को खरीदने को तैयार होता है तो वह ट्रेडर अपने और प्रॉपर्टी के मालिक के लिखे अनुबंध के हिसाब से बायर से सौदा कर लेता है। अपना प्रॉफिट लेकर प्रॉपर्टी के ओनर को उससे किए एग्रीमेंट के हिसाब से उसे राशी देकर , बायर के नाम पर संपत्ति का रजिस्ट्रेशन करा देता है।


एक ट्रेडर है, वह फाइनेंशियल लीवरेज का लाभ रियल एस्टेट संपत्ति में कैसे करता है:


1. सबसे पहले कम वैल्यू पर मिलने वाली प्रॉपर्टी की तलाश की जाती है,जिसमें प्रॉपर्टी मकान, दुकान, प्लॉट, जमीन किसी भी प्रकार की हो सकती है।


2. प्रॉपर्टी के मालिक से मिलकर उसे अपनी कीमत पर खरीदने के लिए मनाना।


3. जब वह मान जाए तो 10% टोकन अमाउंट देकर बची राशी 6 महीने बाद देने का एग्रीमेंट करना।


4. एग्रीमेंट करने के बाद अपनी खरीदी से ज्यादा देने वाले बायर की तलाश।


5. बायर मिलने पर उसे ज्यादा कीमत पर बेचना।


6. अपना प्रॉफिट लेकर, प्रॉपर्टी ओनर को उसकी राशि देकर संपत्ति बायर के नाम पर करवा देना।


उदाहरण:


1. एक प्लॉट है जिसकी वैल्यू ₹10 लाख है।


2. मालिक उसे उसकी वैल्यू से कम पर ₹8 लाख में बेचने को तैयार है।


3. आप उसे 10% देकर 80%, 6 महीने बाद देने का एग्रीमेंट कर सकते हैं।


4. उसी प्लॉट को अपनी सही वैल्यू ₹10 लाख का बायर ढूंढ़ कर उसे ₹10 लाख में बेच सकते हैं।


5. ऐसा करने से ₹8 लाख का प्लॉट आप 10% वैल्यू पर लेटे हैं।


6. ₹2 लाख का प्रॉफिट आप 10% कैपिटल से लेते हैं क्योंकि आप ने 8 लाख का प्लॉट 10% टोकन देकर एग्रीमेंट कर किसी अन्य व्यक्ति को 10 लाख में बेच देते है, 8 लाख 10% वैल्यू से ही 2 लाख प्रॉफिट होगा।


Benefit financial leverage hindi me


इस तरह से फाइनेंशियल लीवरेज का इस्तेमाल इन्वेस्टर करते हैं जिससे कम कैपिटल लगा कर बहुत ज्यादा प्रॉफिट कमाते हैं लेकिन लीवरेज का इस्तेमाल प्रोफेशनल ट्रेडर ही करते हैं। उन्हें एसेट की सही वैल्यू का अनुमान लगाना आता है और उनके पास संपत्ति का सही मूल्य देने वाले बायर भी पहले से ही होते हैं इसलिए वह 10% कैपिटल का रिस्क लेते हैं। समय पर बायर नही मिलता तो बची हुई राशि (कैपिटल) भी उनके पास होता है, जिससे वह समय पर प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन अपने नाम पर करवा लेते हैं और सही बायर मिलने पर प्रॉपर्टी बेच कर प्रॉफिट कमाते हैं।


जरूरी बात:


हर तरह के निवेश में अपने तरह के जोखिम होते हैं। प्रोफेशनल ट्रेडर अपने कैपिटल को बहुत सोच समझकर लगाते हैं। उनका रिस्क मैनेजमेंट होता है। उनके पास अपनी जरूरत के हिसाब से पर्याप्त कैपिटल होता है और उन्हें किसी भी संपत्ति की सही वैल्यू पता होती है। उन्हें पता होता है वह संपत्ति खरीद रहे उसे प्रॉफिट पर ही बेचेंगे।


इंटेलिजेंट इन्वेस्टर बुक के ऑथर अपनी किताब में लिखते हैं समझदार निवेशक निवेश करते समय ही प्रॉफिट पर संपत्ति खरीदता है। उसे पता होता है जो संपत्ति में मैं निवेश कर रहा हूं उसकी वैल्यू से कम पर मैं संपत्ति में निवेश कर रहा हूं , जिसे इंट्रिंसिक वैल्यू लहते हैं। वैल्यू से कम दाम पर संपत्ति लेने और उसकी वैल्यू पर या थोड़ी और ज्यादा पर बेचकर संपत्ति को बेचकर प्रॉफिट कमाता है, ऐसे लोगों को ही इंटेलिजेंट इन्वेस्टर कहा जाता है।


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